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वह तपता सूरज ही मेरी छाव

दीपक अनंत राव “अंशुमान”
केरला

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वह पसीना नमकीन
बहा दिया जनम भर,
मीठी बन गई हैं जिन्दगी हमारी,
जिनके नाम पर है सफर और मंज़र,
हे परम पिता तू ही मेरी पूजा है।

युग युगों से चलती है,
प्यार कोख का और सुरक्षा पितर का
इस धरा में जागते-गूँजते महिमा अपार,
वह ही ये स्थूल सूक्ष्म का,
हे परम पिता तेरी भुजाओं का बल

धरती पर आँचल की प्यार भरी एक कहानी,
तपते सूरज की प्रज्वलित महिमा की एक कहानी
गोदी से प्यार और कंन्धे से ताकत मज़बूत,
लेकर चलती रहती यह समाज निरंतर,
हे परम पिता तू ही मेरे दिखावनहार

मैं एक कवि हूँ, बेटा हूँ
तुम्हारी छाव में खड़ा हूँ, प्यार में पला हूँ
हिमवन में बैठ दुनिया को मज़बूत मन से
निहारता हूँ, सामना करता हूँ, जीत रहा हूँ,
हे परम पिता मैं हूँ सदा तुम्हारा परिच्छेद

परिचय :- दीपक अनंत राव अंशुमान
निवासी : करेला
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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