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नारी ही है

बबली राठौर
पृथ्वीपुर टीकमगढ़ (म.प्र.)

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कहीं-कहीं त्याग की नारी
और मूर्ति महिमा है
इसके रूप कई और वो
माँ की छाँव ममता है
सहनशील रखने वाली
खुशलता की प्रतीक है
घर परिवार को अपना
जीवन देने वाली नारी ही है
कहीं दुर्गा तो कहीं काली बनी
पूजी जाने वाली भी नारी ही है

आज कल तो ये सब एक
सपना सा लगने लगा है
प्राचीन काल की संस्कृति
क्योंकि घिसने लगी है
फिर भी इस जमाने में
कई औरतें सभ्यता संभाले हैं
पहचान, गरिमा को अपना
वक्त देने वाली नारी ही है
कहीं दुर्गा तो कहीं काली बनी
पूजी जाने वाली भी नारी ही है

औरत अगर चाहे तो अपने
घर को स्वर्ग भी बना देती है
मगर ना समझे अपने को,
गलत राहें चल नरक जीवन कर लेतीं हैं
ना समझी अपना कर अपनी
जिन्दगी को खिलौना बनातीं हैं
लालच, महत्वकांक्षा को अपना
सतित्व खोने वाली नारी है
कहीं दुर्गा तो कहीं काली बनी
पूजी जाने वाली भी नारी ही है

परिचय :- बबली राठौर
निवासी – पृथ्वीपुर टीकमगढ़ म.प्र.
घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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