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चला जाऊँगा

आदर्श उपाध्याय
अंबेडकर नगर उत्तर प्रदेश

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रहकर तुम्हारी यादों में कुछ दिन और
फिर मैं अपनी मंजिल की ओर चला जाऊँगा।

क्यूँ रो रहे हो मेरे ख़ातिर ऐ दुनिया वालों
कुछ दिन बाद तुम्हारी यादों से चला जाऊँगा।

ये दुनिया इन्सान को इन्सान नहीं समझती
इन्सानियत से थककर मैं अब चला जाऊँगा।

ये दुनिया क़ाबिलियत को क़ाबिल नहीं समझती
क़ाबिलियत को ज़मीं पर रखकर मैं चला जाऊँगा।

लोग तारीफ़ की ही तारीफ़ करना चाहते हैं
ख़ुद की तारीफ़ सुनने यमलोक चला जाऊँगा।

दुनिया ये मोहब्बत को मोहब्बत नहीं देती
मोहब्बत पाने माँ की गोद में चला जाऊँगा।

क्या है ख़ुदा और क्या है उसकी ख़ुदाई
देखने सब उसके पास चला जाऊँगा।

जब – जब सताएगी मुझे माँ की याद
झट से मैं उसके पास चला जाऊँगा।

रहकर तुम्हारी यादों में कुछ दिन और
फिर मैं अपनी मंजिल की ओर चला जाऊँगा।

परिचय :- आदर्श उपाध्याय
निवासी : भवानीपुर उमरी, अंबेडकर नगर उत्तर प्रदेश
घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।


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