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जीवन-शिक्षण

ओमप्रकाश सिंह
चंपारण (बिहार)

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मेरे छोटे नौनिहालो-
तुम चिरंजीवी रहो।
तुम्हे बताता हूं
जीवन जीने की कला।
श्रम से पसीने से मांशपेशियों को
शरीर को मस्तिष्क को
स्वस्थ बनाना धमनियों में शुद्ध रक्त
की प्रवाह के साथ फेफड़ो में।
शुद्ध वायु एवं मन मस्तिष्क को स्वस्थ रखना
कठिन समय से जूझना
मै समझता हूं जीवन का।
अभी लंबा सफर है
कही उचे टीले तो कहि पथरीली सतह है।
कही समंदर की लहरें तो भयावनी खण्डहरे।
कही सिसकती राते कही मरोडती उदर आते
कही चांदनी का मातम कही अंधेरी राते
मै समझता हूं साहसी कर्मशील होते है
समय की वॉर से झटके या बयार से
फिसलते गिरते है मचलते है
वे पुनः लक्ष्य की ओर कूच कर जाते है।
इसलिए एक नही सैकडो कहानिया
उनके जीवन मे बनते है।

परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा)
ग्राम – गंगापीपर
जिला – पूर्वी चंपारण (बिहार)
सम्मान – राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान
घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।


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