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गांव में घर को बसाना है

राशिका शर्मा
इंदौर मध्य प्रदेश

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शहर हुए पराए अब तो
गांव में घर को बसाना है
अपनी संस्कृति को फिर
एक बार अपनाना है
अपनेपन का जहां ठिकाना है
किसी से कलेश किसी से द्वेष रख
मन को नहीं सताना है
अबकी बार तो सीधे
प्रेम युक्त नगरी को जाना है
जहां डंड, दर्द,
कष्ट का प्रवेश निषेध है
दया भाव का
परिवेश जहां पर शेष है
अपनेपन की परिभाषा
जहां दिखाई जाती है
जहां मां बेटी को संस्कार
संस्कृति का मोल सिखाती है
जहां वेश भूषा साधारण
मां अपनी बेटी को पहनाती है
जहां बड़ों का आदर ना करने पर
छोटों को लज्जा आ जाती है
जहां जात पात का भेद नहीं हर
एक को इज्जत से फरमाया जाता है
हर भाई अपनी बहनों को
सच्ची झूठी बातों का ज्ञान कराता है
जहां बड़ी बहन को मात मानते
भाई पिता बन जाता है

परिचय :- राशिका शर्मा
पिता : सुदामा शर्मा
माता : मंजुला शर्मा
निवासी : इंदौर म.प्र
घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।

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