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मैं किसी साम्प्रदाय में विभक्त क्यूं हूं?

पायल ‌पान्डेय
कांदिवली, पूर्व- मुंबई

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मैं किसी साम्प्रदाय में विभक्त क्यूं हूं?
जब मैं ही गीता के श्लोकों में हूं,
जब मैं ही तीनों लोको में हूं,
जब मैं ही कुरान की आयतों में हूं,
जब मैं ही पैगम्बर की हर बातों मै हूं,
जब मैं ही आरतियां मंदिर की हूं,
जब मैं ही सारथी अर्जुन की हूं,
जब मैं ही मस्जिद की अज़ान में हूं,
जब मैं ही नमाज की हर शान में हूं,
जब मैं ही ब्राम्हण जनैव धारी हूं,
जब मैं ही बुरखे में छिपी कोई नारी हूं।
जब मैं ही सार हूं और मैं ही सारांश हूं,
जब मैं ही वाक्य हूं और मैं ही वाक्यांश हूं,
जब मैं ही उसकी सुन्नत हूं और मैं ही उसकी जन्नत हूं,
तो क्यों मुझे विभक्त करने की क्रिया जारी है,
मुझे किसी सम्प्रदाय में विभक्त करती ये दुनिया सारी है..??

 

परिचय :-  पायल ‌पान्डेय
निवासी : कांदिवली, पूर्व- मुंबई
घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।

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