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यादे माँ की

रवि कुमार
बोकारो, (झारखण्ड)

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यूं ही पडे है चावल के दाने
छत पर जेसे डाल दिया करती थी
माँ आंगन पर जब झुंड मे आकर
चहक- चहकर चुग जाती
सारे दाने वो प्यारी-सी मैना
और गौरेय्या देख सुकून
मिलता था माँ को जब नाचती थी
चिड़ियाँ आँगन आकर।

अब तो बस यादे बनकर रह गई
वो सारी बाते जब माँ पाबंदी लगाती थी
उनकी घोंसलो को छूने पर।
दिखती नहीं अब वो चिड़ियाँ
जो आया करती थी आँगन पर।

अब तो किताबो के पन्नो मे
कैद हो गई मैना
और गौरेय्या की कहानी।
कहा जाता है लुप्त हो गई
सारी चिड़ियाँ इस मानव जीवन से।
कभी-कभी लगता माँ के साथ
चली गई सारी चिडियाँ
आस्माँ की सेर पर
भुल गई मुझे मेरी माँ
चली गयी मुझे अकेला छोड़ कर।

परिचय : रवि कुमार
निवासी – नावाड़ीह, बोकारो, (झारखण्ड)
उद्घोषणा : यह प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।


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