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वक्त के साथ

प्रीति शर्मा “असीम”
सोलन हिमाचल प्रदेश

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वो गलिया,
वो दरवाज़े बदल जाते है।

बचपन के चाव,
जवानी आते-आते ठहर जाते है।

कहाँ ढूँढे कोई,
यादों के घरों को,
यह तो चेहरे -दर-चेहरे
वक्त के साथ बदल जाते है।

हर एक का,
हर एक से,
निश्चित है समय।

बीते वक्त में,
अब जा के कही
कोई मिलता है कहाँ

वो दोस्त मेरे,
वो भाई मेरा,
वो छोटी बहनें
एक छोटा -सा घर मेरा।
एक सपना था मेरा।

मां-बाप तक ही,
यहाँ सारी,
दुनिया सिमट जाती थी।
मेरे घर से छोटी -सी सड़क
शहर तक भी जाती थी।

वक्त गुजरा,
सब बदल गया।
कोई मोल न था,
जिन लम्हों का
आज लगता है कि,
सब वे-मोल गया।

मैं बदला,
सब बदल गया।
मैं हूँ वही,
पर अब वो सब।
वो नहीं कहीं।

वो गलिया,
वो दरवाज़े,
अब बुलाते नही।
वक्त के साथ,
उन से मैं,
मुझसे वो अनजान सही।

क्योंकि वो चेहरे पुराने
अब कहीं नज़र आते नही।

परिचय :- प्रीति शर्मा “असीम”
निवासी – सोलन हिमाचल प्रदेश


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