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एक रात यूँ ही

ओमप्रकाश सिंह
चंपारण (बिहार)

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एक रात यूँ ही मै ठिठक कर सहम गया
अस्मा की ओर हाथ बढ़ाकर लपक गया।
निस्तब्ध शांत रात में
क्या दीवाली माना रहे हो
अपने घर मे तुम
महा पटका उड़ा रहे हों।
तोपो की जैसी गरज आवाज में
तिमिर की प्रकाश में
तुम महदीपवाली माना रहे हो
बोलो बदलो तभी उत्तर में कुछ बूंदे टपकी।
अचानक अंधकार की घानाआवरण
सम्पूर्ण दिशा में फैल गयी।
मालूम हुआ कि कम्पन से
सम्पूर्ण दिशा ही हिल गयी।
तिमिर की प्रकाश सभी मीठे
दिख पड़े सभी स्वच्छ निरभ्र शांत।
ईस्वर की तरफ से यह
ओमकार ध्वनि होता है
प्रार्थना रूपी साक्षात्कार होता है।
वर्षा की रात सुहानी
झींगुर की गुंजन दादुर की
टर टर की आवाज में यह रात
शोभायमान होती है
परी रूपी बदलो की समूहों से
वर्षा की बूंदो रूपी पुष्पो से
मातृ भूमि की अभिषेक होती है
जन जीवन मे फिर से
नव गीत की संचार होती है।

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परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा)
ग्राम – गंगापीपर
जिला – पूर्वी चंपारण (बिहार)
सम्मान – हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान
घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।


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