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इतिहास के क्षितिज में विलीन कविता

योगेश्वर स्वामी
झुंझनू, राजस्थान

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कविता किसी पेड़ से अलग हुआ पत्ता नहीं जिसे हवा अपनी झाड़ू से बुहार दे….
कविता समुद्र भी नहीं जिसपे जहाज़ लंगर डाल ले….
कविता किसी मेहनती किसान की बनियान का स्वेद नहीं, जिसे निचोड़ा जा सके …
बल्कि कविता तो दुनिया के हृदय में गड़ा हुआ एक खूंटा है….
जिसके इर्द गिर्द देहाती जीवन छोटे बच्चे की तरह अठखेलियां खेलता, शरारतों को परवान चढ़ाता नजर आता है। और यही देहाती क्षेत्र, शहरी क्षेत्र को परस्पर जोड़ता है सड़कों के माध्यम से, जिसपे ना जाने कितनी ही कविताएं कवियों के रूप में अपनी कलम के साथ दम तोड़ देती है।
कविता किसी जल – लिपि से लिखित उस आसमान की तरह है जो अपने मर्मस्पर्शी और भावमयी बादलों के सहारे धरा के साथ साथ सूर्य को भी सिंचित करती है कुछ बुज़ुर्ग व्यक्तियों के सुबह के अर्घ्य -जल के सहारे।
कविता शब्दों के समूह की एक कील है जो अंधेरे की दीवार पर उजाले के टुकड़ों को टांगने का काम करती है।
कविता किसी ठंडेपन के मौसम में ऊष्मा और तपिश की स्मृतियों की एक अनुगूंज है जो प्रेम में छल, छल में प्रेम, नकारात्मकता में सकारात्मकता, वेदना में विरह और विरह में वेदना जैसी कृतियों को किसी सन्नाटे में अनुनादित कर उन्हें सक्षमता की कसौटी में कसती हुई नजर आती है।
कविता तो कुछ अभिशप्त भावो की कड़ी है,जो समाज में हो रहे अन्याय के विरूद्ध एक विद्रोह की चिंगारी को प्रज्वलित करने की क्षमता रखती है।
अंततः कविता इतिहास के क्षितिज में छुपा एक संलिप्त दर्द है जहां कवि आसमान की भांति अपनी पृथ्वी रूपी भावनाओं में विलीन होकर क्षितिजता की परिभाषा को संपूर्णता प्रदान करता नजर आता है।

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परिचय :-  योगेश्वर स्वामी
निवासी : कासिमपुरा, झुंझनू, राजस्थान
प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।


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