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हाँ वो पैसे बचाते थे

जनार्दन शर्मा
इंदौर (म.प्र.)

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पुरानी पेंट रफू करा कर पहनते जाते थे,
ब्रांडेड नई शर्ट देने पे आँखे दिखाते थे
टूटे चश्मे से हीअख़बार पढने का लुत्फ़ उठाते थे
टोपाज के ब्लेड से ही वो दाढ़ी बनाते थे
हा वो  पिताजी  पैसे बचाते थे ….

कपड़े का पुराना थैला लिये दूर की मंडी तक जाते थे,
बहुत मोल-भाव करके फल-सब्जी लाते थे
आटा नही खरीदते, वह तो गेहूँ पिसवाते थे..
वो  पिताजी ही थे जो पैसे बचाते थे…

वो स्टेशन से घर तक पैदल ही आते थे
सदा ही रिक्शा लेने से कतराते थे।
अच्छी सेहत का हवाला देते जाते थे …
बढती महंगाई पे हमेशा चिंता जताते थे
वो  बाबूजी थे जो सबके लिये पैसे बचाते थे …

कितनी भी  गर्मी हो वो  पंखे में बिताते थे,
सर्दियां आने पर रजाई में दुबक जाते थे
एसी/हीटर को सेहत का दुश्मन बताते थे
लाइट खुली छूटने पे नाराज से हो जाते थे
वो पप्पा ही थे जो भविष्य के लिये पैसे बचाते थे…

माँ के हाथ के खाने में रमते जाते,
बाहर खाने में आनाकानी मचाते
साफ़-सफाई का हवाला देते  जाते,
मिर्च, मसाले और तेल से घबराते थे
वो  दादा ही थे जो पैसे बचाते थे…

गुजरे कल के किस्से सुनाते थे,
कैसे ये सब जोड़ा वो गर्व से बताते थे
पुराने दिनों की याद वो दिलाकर खुद
उदास से हो जाते थे, ………..
बचत की अहमियत समझाते थे ………..

हमारी हर मांग को वो, फ़ौरन पूरी करते जाते थे
तब पता लगता था कि वो ही सबके पिताजी,
बाउजी, पप्पा,दादा हमारे लिए ही
पैसे बचाते थे… हमारे लिये ही पैसे बचाते थे…

शत, शत, नमन करता हूँ उनको
वही सही जीवन जीने का मार्ग दिखलाते थे ?
वाकई वो, पिताजी, बाबूजी पैसे बचाते थे…

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परिचय :- जनार्दन शर्मा (मेडीकल काॅर्डीनेटेर) आशुकवि, लेखक हास्य व्यंग, मालवी, मराठी व अन्य, लेखन,
निवासी :- इंदौर म.प्र.
सदस्य :- अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी परिषद…
उपलब्धियां :- हिन्दी, मराठी नाट्य कलाकार व निर्देशन, विभिन्न भाषाओं में कार्यक्रम संचालन, टीवी.विज्ञापन व लघु फिल्म कलाकार, अंतर्राष्ट्रीय हास्ययोग एम्बेसेडर (गिनिज वर्ल्ड रिकार्ड), विश्व हास्ययोग फेडरेशन महासचिव, संगीत एवं मिमिक्री कलाकार, अखिल भारतीय कविसम्मेलन व अन्य साहित्य सम्मानो से सम्मानित! विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मे आलेख प्रकाशित।


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