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मेरे पिताजी

डॉ. भवानी प्रधान
रायपुर (छत्तीसगढ़)

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जिस तरह माँ को परिभाषित करने के लिए शब्द कम पड़ जाते हैं वैसे ही पिताजी की अहमियत को समझना आसान नहीं है। बात उन दिनों की है, जब मेरी शादी हो गई थी, और मैं एक बच्चे की माँ बन गई थी। मम्मी -पापा मुझसे मिलने हॉस्पिटल आये थे। बगल के सोफ़े में बैठे मम्मी-पापाजी बातें कर रहे थे। कह रहे थे- बिटिया जब छोटी थी और जब इसकी तबियत ख़राब रहती, तब एक इंजेक्शन लगवाने के लिए भी तैयार नहीं होती थी। बोलती थी डॉ. अंकल मुझे जितना गोली देना है दे दीजिए पर इंजेक्शन मत लगाइयेगा, और आज इतने बड़े आपरेशन के लिए कैसे तैयार हो गई। माँ बोली अब हमारी बेटी बड़ी हो गई है और आज तो हमारी बिटिया को दुनिया का सबसे बड़ा सुख मातृत्व सुख मिला है, तो भला आपरेशन के लिए कैसे मना करती। सच में वह बातें सुनकर मैं भावविभोर हो गई थी। पिताजी सब जानते थे, पर कभी बोलते नहीं थे। हम लोगों से कम बातें किया करते। इसलिए लगता था हमें तो प्यार ही नहीं करते हैं। लेकिन जब हम स्वयं उनकी जगह पर आ गए तब समझ पाए कि पिताजी हमारे लिए कितना महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। पिताजी का मतलब घर की आधारशीला, साहस, धीरज, संबल, एक अदृश्य कवच हैं, जो हमें ज़िंदगी भर सुरक्षा देते हैं। बच्चों की हर छोटी-छोटी बातें मम्मी-पापाजी को याद रहती हैं। बच्चों की एक खुशी के लिए अपना सुख-दुःख भूल जाते हैं।

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परिचय :- डॉ. भवानी प्रधान
जन्म : २४ फरवरी महासमुंद (छ.ग.)
पिता : श्री गौतम भोई
माता : श्रीमती बिलासिनी भोई
पति : श्री शेषदेव प्रधान
निवासी : रायपुर (छत्तीसगढ़)
शिक्षा : एम. ए. राजनीति शास्त्र, एम. ए. हिंदी, साहित्य, बी. एड., डी. सी. ए., डिप्लोमा, इन इंग्लिश, पीएच. डी.
प्रकाशन विवरण : विभिन्न राष्ट्रीय शोध -पत्रिकाओं में एवं पुस्तकों में शोध-पत्रों का प्रकाशन, विजन आज – कल मासिक पत्रिका में, प्रबंध सम्पादक, लोक राग साहित्यिक वेब पोर्टल, देवभूमि साहित्यिक वेब पोर्टल, स्वैक्षिक दुनियां साहित्यिक वेब पोर्टल, दक्षिण समाचार -प्रतीक्षा साहित्यिक पत्रिका में समसामयिक विषयों पर आलेखों का प्रकाशन
सम्प्रति : शासकीय दिग्विजय महाविद्यालय राजनांदगांव में अतिथि व्याख्याता (हिंदी )
अन्य : तपस्या सामाजिक सेवा संस्थान में सक्रिय भूमिका, विभिन्न समाज सेवी संस्थाओं में भागीदारी


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