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पिताजी

जीत जांगिड़
सिवाणा (राजस्थान)

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मैं दफ्तर से लौटू तो ऐसा लगता हैं कि कोई बुला रहा है,
घर के अन्दर से निकलकर जैसे कोई मेरे पास आ रहा है।

लगता हैं कि वो डाँटेगा और कहेगा कि मास्क लगाया नहीं तूने,
अरे ये बाईक और मोबाईल भी आज सेनेटाइज किया नहीं तूने।

महामारी फैली हुई हैं और तू बेपरवाह होता जा रहा है,
हेलमेट भी नही लगाया कितना लापरवाह होता जा रहा है।

हर रोज की तरह आज भी तू मुझको बताकर नही गया,
तेरी माँ सुबह से परेशान है कि तू खाना खाकर नही गया।

सोचता हूँ कि ये सब घर पर सुनूंगा और सहम जाऊंगा मैं,
मगर ये क्या पता कि अब ये सिर्फ एक वहम पाऊंगा मैं।

अब घर लौटते ही दरवाज़े पर खड़े पिताजी नहीं मिलते,
मेरी जीवन नौका तारणहार मेरे वो माझी नहीं मिलते।

अब क्या गलत है और क्या सही है ये बताने वाला कोई नहीं,
बार बार डांटकर फटकार कर अब समझाने वाला कोई नहीं।

आज सब कुछ पाकर जब अपने पैरों पर खड़ा हो चुका हूं मैं,
पर पापा मेरी गलती नहीं बताते क्या इतना बड़ा हो चुका हूं मैं।

आज सुख चैन है, खुशियां है मेरे पास मगर आप नहीं,
ये मकान सशरीर खड़ा है मगर इसमें शायद प्राण नहीं।

धैर्य, त्याग, स्नेह, समर्पण, परिश्रम और अनुशासन है,
पिताजी परिवार रूपी देश पर एक लोकतांत्रिक शासन है।

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परिचय :- जीत जांगिड़ सिवाणा
निवासी – सिवाना, जिला-बाड़मेर (राजस्थान)


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