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छोड़ चले

डॉ. कामता नाथ सिंह
बेवल, रायबरेली

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एक एक कर रिश्ते सारे तोड़ चले।
आसमान को सूरज तारे छोड़ चले।।

निभा सके हम जितने वे सब निभा लिए,
बाकी करके वारे न्यारे छोड़ चले।।

जिन जिन रिश्तों में असमंजस बना रहा,
उन सबको हम एक किनारे छोड़ चले।।

चांद चांद है, सूरज आख़िर सूरज है,
महफ़िल को जुगनू बेचारे छोड़ चले।।

डाल न पाए जहां विचारों के लंगर,
ऐसे दरिया और किनारे छोड़ चले।।

आदर्शों के जनमत पर बहुमत भारी,
वह संसद भगवान सहारे छोड़ चले।।

आंधी, तूफानों के आगे झुक जाएं,
हम ऐसे कमजोर सहारे छोड़ चले।।

मौत की तरफ पल पल बढ़ते जीवन को
ख़ुद ही हम जैसे बनजारे छोड़ चले।।

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परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह
पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह
निवासी : बेवल, रायबरेली
यह मेरी स्वरचित, मौलिक और अप्रकाशित रचना है।


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