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चिंकी का खत

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून”
पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़)

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चिंकी बड़ी ही तन्मयता से कुछ लिख रही थी, जैसे ही पापा को अपने कमरे की तरफ आते देखा, अनायास ही उसके हाथ रुक गए जैसे किसी ने उसकी चोरी करते रंगे हाथों पकड़ा हो और कॉपी अपने पीछे छुपा कर खड़ी तो गई। पापा ने पूछा- क्या बात है बेटा तुम इतना घबरा क्यूँ रही हो? चिंकी ने रूआँसे होते हुए कहा कुछ नही, पापा बस यूंही … कह कर दौड़ कर चली गई। पापा को चिंकी की हरकत कुछ संदेहास्पद लगी। बात आई गई हो गई। रात को सोने के लिए अपने रूम मे जाते वक़्त अचानक फिर उस घटना की याद आ गई और पापा
के मन में उधेड़ बुन शुरू हो गया की आखिर चिंकी ऐसा क्या लिख रही थी जो उनके आते ही सिहर उठी और घबरा गई। कहीं ऐसी वैसी बात तो नही, यह सब सोंचते सोंचते बरामदे में टहलने लगे, टहलते हुए उनकी नज़र चिंकी पर पड़ी जो गहरी नींद सो चुकी थी, चिंकी के रूम में जाकर पापा ने वह कॉपी उठाई, कॉपी उठाते वक़्त पापा के हाथ काँप रहे थे, कॉपी खोलने की हिम्मत नही जुटा पा रहे थे, लेकिन हिम्मत कर के कॉपी खोली। कॉपी में लिखे एक एक शब्द जैसे उनके सीने में उतरते चले जा रहे थे और पापा की आँखों मे अविरल अश्रुधारा बहने लगी, कॉपी में लिखा यह छोटा सा पत्र ……….
थैंक यू मोदी अंकल
पता है आपको मोदी अंकल आपने जबसे लॉक डाउन घोषित किया है तब से हमारे घर में सब कुछ बदल गया है, अब हमारे पापा पहले वाले पापा नही रहे, अब हमारे पापा हम लोगों के साथ बैठ कर खाना खाते हैं, टी.वी. देखते है, गेम खेलते हैं। मम्मी के साथ किचन में हाथ बटाते हैं, दादा-दादी का भी बहुत खयाल रखने लगे हैं। अंकल आपको पता है पापा जब पहले घर आते थे तो उनके मुंह से गंदी सी बदबू आती थी, बेवजह
चीखना चिल्लाना, मारना पीटना, समान फेंकना छोटी-छोटी बात पर मम्मी के ऊपर हाथ उठाना यह सब हमारी दिनचर्या का हिस्सा बन गया था। हम लोग घर में डरे सहमे से रहते थे और दादा-दादी भी डर की वजह से कुछ कह नही पाते थे। मुझे पता चला है कि जिस चीज को पीने से पापा का दिमाग खराब हो जाता था लॉक डाउन की वजह से अब वह बाज़ार में नही मिलती है। इसलिए पापा अब अच्छे से रहने लगे हैं। मोदी अंकल अभी मैं बहोत छोटी हूँ। पर मेरे जैसे और भी होंगे जो अभी खुश होंगे, तो क्या अंकल ऐसी खुशी हमे हमेशा नही मिल सकती? अगर आप चाहें तो मेरे पापा अभी जैसे हैं वैसे ही हमेशा रह सकते है। प्लीज़ मोदी अंकल कुछ करिए न ….पढ़ते-पढ़ते पापा के आँखों से आँसू रुकने का नाम नही ले रहा था और वह अपने आप को अपने बीबी बच्चों का गुनाहगार मान रहे थे, कमरे में आहट से चिंकी की नींद खुल गई उसने देखा पापा के हाथों में वही कॉपी है और पापा रो रहे हैं। चिंकी ने कहा पापा आप प्लीज़ मत रोइये, मैंने तो बस यूंही लिख दिया था। सॉरी पापा सॉरी …………
अब बारी पापा की थी सॉरी कहने की ……… पापा ने कहा, बेटा सॉरी तो मुझे कहना चाहिए, मैं ही गलत था जो तुम लोगों से दूर अपनी अलग
दुनिया मे मस्त हो गया था, हो सके तो मुझे माफ कर देना मेरी बच्ची ……… फिर अचानक ही उनके दिमाग मे यह खयाल आया कि जब मैं इसके बिना इतने दिन रह सकता हूँ, तो आगे भी इसके बिना रहा जा सकता है। अब आगे से कभी भी इस गंदी चीज़ को हाथ नही लगाऊँगा।पापा ने आपने दोनों कान पकड़ कर कहा, सॉरी बेटा ……. मुझे माफ कर देना, और हाँ एक थैंक्स अपने मोदी अंकल को मेरी ओर से भी कहना …… मुझे इस दलदल से निकाल कर अपनी प्यारी बिटिया से मिलाने के लिए।

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परिचय : रश्मि श्रीवास्तव “सुकून”
निवासी : मुक्तनगर, पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़)
घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है।


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