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क्षण फुरसत के है नहीं

रीतु देवी “प्रज्ञा”
(दरभंगा बिहार)

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विषय :- आधुनिक परिवेश में भागता इंसान

धन, वैभव पीछे भाग रहा है इंसान सभी
पल दो पल भी क्षण फुरसत के है नहीं
जब देखो आँखें बुनते रहते हैं स्वप्न
सिसकती आहें खो रहे हैं अपनत्व
तरसे बच्चे पाने को
ममता भरी माँ के आँचल का प्यार
दिन, महीने हैं गुजर जाते
दे न पाते पिता अपना असीम दुलार
वृद्ध चक्षु खोजते हैं रहते
शीतल वटवृक्ष छाया
हृदय है शून्य सभी
हर तरफ बढ गए तार वृक्ष साया
अकेलापन समा रहा है जिंदगी में
रौनक रही नहीं अब बंदगी में
ईर्ष्या, द्वेष का जाल बिछा है चहुँ दिशा
फंसाती ही रही है सदैव काली निशा
समझ न पाता फिर भी
चैन की नींदिया न ले पाता कभी।
धन, वैभव पीछे भाग रहा इंसान सभी
पल दो पल भी क्षण फुरसत के है नहीं।

परिचय :-  रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार


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