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हाँ आग लग चुकी है

पवन मकवाना (हिन्दी रक्षक) 
इन्दौर (मध्य प्रदेश)

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हाँ आग लग चुकी है
इक अंधे कुंए में ….
करो जल्दी, और निकाल लो
रखा था/जो कुछ सहेजकर/इस कुंए में
कुंआ जिसमे कुछ ना देता/है दिखाई
थी जिंदगी भर की कमाई,
कुछ दुःख जो बांटे थे कभी/दोस्तों से अपने
कुछ पुण्य जो कमाया था/दया करके किसी पर
कुछ सुख जो पाया था/बनाकर किसी को अपना
कुछ ग़म जो दिए थे/किसी ने सहेजकर रखने को

हाँ जल्दी करो आग लग चुकी है ….

और भी है बहुत कुछ
इस अंधे कुंए में,
अपनों का गुस्सा/माता की ममता/पिता का प्यार
भाई बहनों का खार/दादी का दुलार
जवानी का खुमार
हाँ निकाल लो सब
इससे पहले की सब ख़त्म हो जाए
इस संसार के छल-कपट रूपी आग में
मारा-मारी/जागीरदारी/और दमन में
उन लोगों के जो किसी को पहचानते नहीं
जिनका काम सिर्फ जान लेना/लूटना नोंचना है

हाँ जल्दी करो आग लग चुकी है ….

बचा लो अपनी उजड़ी यादें
और अपना संसार
इसके पहले की कोई/
करे साबित दोषी तुम्हें ….
की किया क्या है/तुमने
आकर इस संसार में
इसके पहले की करे तय कोई
की सजा क्या है
जन्म लेने की तुम्हारे ….

हाँ जल्दी करो आग लग चुकी है ….

परिचय : पवन मकवाना (हिन्दी रक्षक)
जन्म : ६ नवम्बर १९६९
निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश
सम्प्रति : संस्थापक- हिन्दी रक्षक मंच
सम्पादक- hindirakshak.Com हिन्दीरक्षकडॉटकाम
सम्पादक- divyotthan.Com (DNN)
सचिव- दिव्योत्थान एजुकेशन एन्ड वेलफेयर सोसाइटी
स्वतंत्र पत्रकार व व्यावसाइक छायाचित्रकार


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