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वंशीधर

मिथिलेश कुमार मिश्र ‘दर्द’
मुज्जफरपुर

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माना
मान लिया कि
आज वंशीधर का
पैदा होना
मुश्किल है
पर असंभव तो नहीं
कठिनाइयाँ हो सकती हैं
हो सकती हैं क्या
हैं
पर इससे वंशीधर का
पैदा होना तो
नहीं रुक सकता
सारा संसार
पंडित अलोपीदीन के
चरणों में तो
नहीं झुक सकता
कहीं-न-कहीं
पंडित को हारना ही है
अंत में उसे
स्नेह से
वंशीधर को
गले लगाना ही है
और
‘नमक का दारोगा’
के पिता
के मन से
ग्लानि का भाव
भगाना ही है
‘सच का सूरज’
उगता है
पर
उसके उगने के पहले
वंशीधरों की
इतनी परीक्षा हो जाती है
कि
कई वंशीधर
वंशीधर रह ही नहीं पाते हैं
झूठ के अंधेरे में वे
इस तरह खो जाते हैं
कि
कभी वे वंशीधर थे
कहना
वंशीधर का अपमान है
उस वंशीधर का
जिसका अपना स्वाभिमान है
और जिसके सामने
दुनिया की सारी दौलत
व्यर्थ है
क्योंकि
वंशीधर
अपने स्वाभिमान
की कीमत
चाहे वह कितनी
ही क्यों न हो
चुकाने में समर्थ है
समर्थ है।

.

परिचय :- मिथिलेश कुमार मिश्र ‘दर्द’
पिता –
रामनन्दन मिश्र
जन्म –
०२ जनवरी १९६० छतियाना जहानाबाद (बिहार)
निवास –
मुज्जफरपुर
शिक्षा –
एम.एस.सी. (गणित), बी.एड., एल.एल.बी.
उपलब्धियां –
कवि एवं कथा सम्मेलन में भागीदारी पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन
अप्रकाशित रचनाएं –
यज्ञ सैनी (प्रबंध काव्य), भारत की बेटी (गीति नाटिका), आग है उसमें (कविता संग्रह), श्रवण कुमार (उपन्यास), परानपुर (उपन्यास), अथ मोबाइल कथा (व्यंग-रचना)


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