Thursday, November 7राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

चल उड़ जा रे पंछी कि अब ये देश हुआ बेगाना

डॉ. ओम प्रकाश चौधरी
वाराणसी, काशी

************************

                                    कभी यह गाना हमारे बहुत ही अजीज अच्छू बाबू (श्री अच्छेलाल राजभर) प्रायः गुनगुनाया करते थे। आज सुबह-सुबह अच्छू बाबू की याद आयी और यह गीत अनायास ही मेरी जुबान पर आ गया। मन बड़ा बोझिल हुआ। आज इस कोरोना वायरस से उत्पन्न हुई महामारी के कारण जो पूरे देश में भारतीय गरीब मजदूरों का देश के कोने-कोने से पलायन हो रहा है यह काफी दर्द भरा एवं खौफनाक मंज़र है। यह मंजर कभी हमारे पुरनियों ने १९४७ में भारत विभाजन के दौर में अपने आंखों से देखा था। उसमें से श्री लालकृष्ण आडवाणी जी जैसे महानुभाव भी अभी हैं, जो विभाजन में यहां आ गए थे। उस खौफनाक मंज़र को हमलोगों ने तो फिल्मों में ही देखा या सुना है। वह मंज़र देख कर दिल दहल जाता है। आज वही मंज़र जब भारत स्वतंत्र है तब देखने को मिल रहा है। बस अंतर यही है कि उस समय मामला साम्प्रदायिक तनाव के कारण था तो आज कोरोना वायरस से उत्पन्न हुई महामारी के कारण साथ ही लाकडाउन के कारण भी। उस समय काफी कुछ कत्ले-आम भी हुआ था तो आज लोग भूखे-प्यासे, नंगे पाँव, बाल-बच्चों को साथ साथ में लेकर गठरी-मोटरी लिए इस आत्म विश्वास के साथ देश के कोने-कोने से हजारों मील की यात्रा पर अपने-अपने घर की ओर चल पड़े कि-मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास कि हम पहुंचेगे अपने गाँव-घर एक दिन। कोई अपने लड़के को बैल के साथ बैलगाड़ी में जोत दिया है, तो कोई जुगाड़ से छोटी सी गाड़ी पर अपनी गर्भवती पत्नी व बच्चे के साथ सड़क पर घसीटे जा रहा है, कोई हजार किलोमीटर की यात्रा अपनी पत्नी बच्चों को रिक्शे पर बिठाकर खींच रहा है, महिला बच्चा जनने के २ घंटे बाद ही १५० किलोमीटर पैदल चलती है फिर कोई सज्जन उस नवजात का तन ढकने का कपड़ा और प्रसूता को भोजन पानी उपलब्ध कराते हैं।पैदल तो कितने आये गिनती से परे है। हमारे गांव के बगल में खेदू दादा (मिलिटरी) अपनी दास्तान सुनाते थे कि रंगून से पैदल घर तक आये थे, वो परियों की कहानी सी लगती थी, आज हकीकत हैं।हमारे एक रिश्तेदार गोवा में फंस गए थे, चिन्ता लगी रहती थी रोज बात होती थी ५२ दिन बाद किसी तरह वापस आये जिसका पूरा परिवार ही रास्ते में है उसकी मनः स्थिति की कल्पना सहज की जा सकती है। यह कहीं न कही समय से उचित निर्णय न लेने का दुष्परिणाम है। सभी अब प्रवासी मजदूर कहलाने लगे हैं। अभी तक तो प्रवासी ऐसे भारतीयों के लिए शब्द था जो लोग विदेशों में लाल, पीला, हरा कार्ड बनवाकर रहते थे। आज कितना बड़ा मजाक है कि एक तो ये हमारे भाई-बहिन, काका-काकी, बाबा-बूढ़ी, मौसा-मौसी, मामा-मामी, साली,साला सरहज, साढू, बहनोई, यार-दोस्त, नातेदार, रिश्तेदार जो रिश्ते में भी नहीं है वह भारतीय तो है, वह चाहे किसी जाति धर्म या फिर किसी भी सम्प्रदाय के हैं। उसे अपने गाँव, देहात,जिला-जवार या राज्य में रोजगार नहीं मिला तो घर-बार छोड़कर देश के सुदूर अंचल में चला गया। आज इस विपदा में उसका सब कुछ लूट लिया मिल के उस काम देने वालों ने तो वह जब कोरोना वायरस से उत्पन्न हुई महामारी के कारण भयाक्रांत हो गया और खाने और रहने के लिए नहीं मिला, उस शहर में जहां न जाने कितनी गगनचुम्बी और आलीशान भवनों के निर्माण में अपना खून-पसीना बहाया था वेबश होकर मरता क्या न करता। वह चल पड़ा अपनी पुरानी मंजिल की ओर, जिस गाँव को छोड़कर वे शहर गए थे, उसी डगर पर बिना जान की परवाह किए। कितने रास्ते में ही दम तोड़ दिए अपनी जन्मभूमि गाँव-जवार की मिट्टी भी नसीब नही हुई, रेल की पटरी पर मालगाड़ी रौंदते हुए चली गयी। इस पर भी सरकार और विपक्षी दल राजनीति करने से बाज नहीं आ रहे हैं। इनके ऊपर दोहरी मार पड़ रही है। चले तो थे अपने घर-गाँव कि वहाँ चलकर सुकून से तो रहेंगे।परन्तु यहाँ पहुँचने पर उनके साथ परदेशियों जैसा व्यवहार हो रहा है। क्वारन्टाइन सेन्टर में पहले जाओ और जाँच कराओ। वहां की हकीकत से आप सभी अब तक भलीभांति परिचित हो चुके हैं। इनकी स्थिति वही हो गयी है कि-इन परदेशियों से ना हथवा मिलाना, दूर-दूर ही रहना। ये न तो घर के हो रहे हैं न ही घाट के।गाजीपुर का युवक अपनी पत्नी और छोटे से बच्चे के साथ मुंबई से गाँव आया, जिस मिट्टी में जिस जननी ने उसे जना था वहीं रहने की ठौर न मिली पत्नी की जन्मस्थली और उसके जन्मदात्री के घर का रुख किया वहाँ भी निराशा ही हाथ लगी, जीवनसाथी औऱ बच्चे से मुँह मोड़ अपने को माँ गंगा की गोंद में समर्पित कर दिया, दो मांओं की दुत्कार ने उसे अंदर से झकझोर दिया था। आगे अब लिखना कठिन हो रहा है, भावनाएं, संवेदनाएँ मन को विह्वल कर दे रही हैं, शब्दों को रोक दे रही है, फिर कभी विस्तार से। इन भारतीय मजदूरों के दुःख-दर्द ने सबका मन द्रवित कर दिया है। आगे ये स्वस्थ व प्रसन्न रहें ताकि सृजन में अपना योगदान कर राष्ट्र को समृद्धिशाली बना सकें। धन्य हैं वे लोग जो निस्वार्थ भाव से इनकी सेवा व मदद में लगे हुए हैं। ऐसे महानुभावों को सादर नमन, वन्दन, अभिनंदन।

.

परिचय :- डॉ. ओम प्रकाश चौधरी
निवासी : वाराणसी (काशी)
शिक्षा : एम ए;पी एच डी (मनोविज्ञान, एलएलबी
सम्प्रति : एसोसिएट प्रोफेसर एवम विभागाध्यक्ष, मनोविज्ञान विभाग श्री अग्रसेन कन्या पी जी (स्वायत्तशासी) पी जी कॉलेज वाराणसी।
लेखन व प्रकाशन : समाचार पत्र-पत्रिकाओं में आलेख लेखन। कई पुस्तकों में अध्याय लेखन सहित ३ पुस्तकें प्रकाशित। भारतीय समाज विज्ञान अनुसंधान परिषद,दिल्ली द्वारा शोध प्रबंध प्रकाशित।
रुचि : पर्यावरण संरक्षण विशेषकर वृक्षारोपण।
सम्मान : गाँधी पीस फाउंडेशन, नेपाल द्वारा “पर्यावरण योद्धा सम्मान”प्राप्त।


आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने चलभाष पर या गूगल पर www.hindirakshak.com खोजें…🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा जरुर कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com हिंदी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु हिंदी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉🏻  hindi rakshak manch 👈🏻 … हिंदी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *