Sunday, November 24राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

मानवता

उस समय की बात है जब संदीप ओर उसके दोस्त गुजराती कार्मस महाविधालय इन्दौर में वर्ष २००६ में बी.कॉम द्वितीय वर्ष में अध्ययनरत थे, संदीप ओर साथी दोस्त अधीकतर रेल परिवहन से देवास से इन्दौर अध्ययन हेतु प्रतिदीन आना जाना किया करते थे, उनको घर से कभी जरुरत पड़ने व नाशते पर खर्च हेतु ३० रु. दीये जाते थे। महाविधालय में परीक्षा के नामांकन प्रपत्र जमा होने के कारण रेल अपने नियत समय से स्टेशन से निकल चुकी थी, व दूसरी रेल २ घण्टे बाद चलने वाली थी, संदीप ओर उसके दोस्तों द्वारा बस परिवाहन से इन्दौर से देवास जाने का निश्चय किया, बस में पुरी सीट भर जाने के कारण खड़े खड़े जाना पड़ा, जहॉ संदीप खड़े थे उसके समीप वाली सीट पर एक बुजुर्ग बैठे थे, मुख पर निराशा के भाव व चिंता की लकीर अलग ही प्रतीत हो रही थी। बस अपने गंतव्य स्थान देवास के लिये निकल गई, करीब १०-१२ किलोमीटर के सफर तय करने के बाद बस कंडक्टर का बस किराये वसूलने हेतु आगमन हुवा, उस समय इन्दौर से देवास का किराया १५ रु. हुवा करता था, सभी यात्री बारी-बारी तय १५ रु किराया कंडक्टर को देने लगे, संदीप ने भी अपना किराया देने हेतु हाथ में २० रु. का नोट रख रखा था, बुजुर्ग ओर उनके समीप बैठे सज्जन के बाद संदीप को किराया देना था, पर जैसा बुजुर्ग के माथे पर चिंता की लकीर जो दिख रही थी शायद उसी का समाना उस बुजुर्ग के साथ होने वाला था, कंडक्टर ने जब बुजुर्ग से १५ रु किराया मांगा तो बुजुर्ग ने ५ रु. कम होना बताकर १० रु. कंडक्टर को दीये परन्तु कंडक्टर के स्वभाव अनुसार बुजुर्ग से ५ रु. ओर मॉगने हेतु बहस बाजी करने लगा की जब किराया देने की नही बनती तो बस में सफर क्यो करते हो, मुझको भी बस मालीक को हिसाब देना होता है, हमारे भी घर बार है आदि बाते बोलता रहा, बुजुर्ग व्यक्ति चुपचाप सुनता रहा, उनके समीप बैठे सज्जन ओर समीप खड़े संदीप को मानो बुजुर्ग व्यक्ति की समस्या का ऐहसास हो गया था ओर दोनों ने एकसाथ २० रु. आगे करके कंडक्टर को दे दीये ओर बोले हमारे १५ रु. काटकर इन बुजुर्ग के भी ५ रु. किराया काट लो, शायद कंडक्टर को भी अपने बर्ताव पर लज्जा आ रही थी पर उसने अपनी जिम्मेदारी निभाते हुवे बोला सर किसके इसमे से ५ रु. कट करु, फीर दोनों एकसाथ बोल दीये भैय्या मेरे इसमे से काट लो, सज्जन जो समीप बैठे थे उन्होने संदीप से कहॉ बेटा अभी ये मानवता की सेवा मुझे करने दो, तुम अभी छात्र हो, जब तुम कही अच्छे पद पर कार्य करने लगो जब मानवता की सेवा करना, जिंदगी में बहुत अवसर आयेगे, संदीप बिना कुछ कहे ही सुनता रहा व सोचता रहा, मानवता की सेवा करना हर किसी के भाग्य में नहीं होता।

.

परिचय :- संदीप जाकोनीया
निवासी : देवास मध्य प्रदेश


आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने चलभाष पर या गूगल पर www.hindirakshak.com खोजें…🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा जरुर कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com हिंदी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु हिंदी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉🏻hindi rakshak manch 👈🏻 हिंदी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें … हिंदी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *