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आसमानी संकट

राजनारायण बोहरे
इंदौर मध्य प्रदेश

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प्रोफेसर गगन की नींद टूटी तो उन्होंने खड़े होकर अपने हाथ-पांव फैलाये, और अंगडाई ली। फिर आगे बढ़कर सामने रखे टेलीविजन का बटन दबा दिया। टेलीविजन के पर्दे पर सुनहरे रंग के अक्षरों में एक वाक्य लिखा हुआ दिखाई दिया-
’’आज दिनांक एक जून सन् २१४५ है।
भारत की जमीन से आठ लाख किलोमीटर दूर घूम रहे इस अंतरिक्ष केन्द्र पर आपका स्वागत है। चलिये हम अंतरिक्ष केन्द्र की पूरी बस्ती के हालचाल जानें।’’
प्रोफेसर गगन ने आवाज लगाई-’’संजय जल्दी से मेरी कसरत की मशीन ले आओ।’’
कुछ सैकेण्ड बाद ही उस कमरे की दांयी दीवार में बना दरवाजा खुला और उसमें से मशीन का बना एक आदमी (रोबोट) अपने हाथों में पाइपों से बनी झूले जैसी एक मशीन घसीटता हुआ कमरे में दाखिल हुआ।
प्रोफेसर गगन इस मकान में अकेले रहते हैं। उनकी सेवा करने के लिये एक मात्र रोबोट है। वह कमरे के बाहर दीवार के पास बरामदे मेें खड़ा रहकर प्रोफेसर गगन के हुकुम का इंतजार करता रहता है। प्रोफेसर ने इसका नाम संजय रखा है।
संजय के हाथ से कसरत की मशीन लेकर प्रोफेसर गगन कसरत करने लगे, तो संजय पीछे मुड़ा और सैनिक की तरह खट-खट करता हुआ कमरे से बाहर हो गया। प्रोफेसर गगन अपने हाथ और पांव स्प्रिंग में फंसाकर कसरत करने लगे। अब उन्होंने अपनी निगाह टेलीविजन के पर्दे पर जमा दी थी।
टेलीविजन पर अंतरिक्ष केन्द्र के मकान और गलियों के चित्र दिख रहे थे। वहाँ सारे के सारे मकान एक से लग रहे थे। हर मकान के दरवाजे के ऊपर अलग-अलग नम्बर लिखे थे। हर दो मकानों के बीच छोटे-छोटे बगीचे और मैदान भी दिख रहे थे।
कसरत करते गगन अब पसीने से भीग गये थे। उन्होंने हाथ आगे बढाया और टेलीविजन के नीचे लगा लाल बटन दबा दिया। दृश्य बदला और अब कांच की शीशियाँ तथा बड़ी बड़ी बोतलों से सजे किसी कमरे का दृश्य पर्दे पर दिखने लगा था। लम्बी-लम्बी मेजों के बीच रखी एक घूमने वाली कुर्सी पर बैठे एक बूढ़े से सज्जन भी अब गगन के टेलीजिवन पर दिखने लगे थे। उन सज्जन के सामने एक टेलीविजन भी रखा था जिसमें गगन का चेहरा दिखने लगा था। गगन ने कहा- ’’धीरज साहब को मेरा नमस्कार !
-’’नमस्कार गगन जी ’’ धीरज बोले।
’’आज हम लोग इतिहास वाले कम्प्यूटर केन्द्र पर चलेंगे धीरज जी ! आपको याद होगा कि कल वहाँ स्कूल के बच्चे आ रहे हैं।’’
’’मुझे याद है प्रोफेसर गगन ! मैं सोच रहा था कि हमारे इस अंतरिक्ष केन्द्र में आप ही तो सबसे बड़े अधिकारी हैं। शायद आपको समय न हो।’’
’’प्रोफेसर धीरज, याद रखिये, कि समाज में बच्चों का बड़ा महत्व होता है, मैं बच्चों के लिए सदैव खाली रहता हूँ।’’
’’धन्यवाद गगन जी ! ओ-के। ’’
’’ओ.के.’’ कहकर गगन ने टेलीविजन बंद किया और वे बाथरूम में घुस गये।
बाथरूम से निकलकर उन्होंने संजय को आवाज दी-’’संजय, चाय ले आओ।’’
कुछ देर बाद संजय एक पहियेदार मेज को धकेलता हुआ कमरे में आया और मेज को गगन के सामने रख एक तरफ खड़ा हो गया। गगन एक मग में चाय भरने लगे।
चाय पीते-पीते उन्हें याद आया तो वे संजय से बोले-’’जरा स्कूल फोन करके पता करो कि हमारा बेटा निमिण कैसा है ? ’’
’’यस सर,’’ रोबोट संजय का खरखराता हुआ स्वर गूंजा और वह अपने सीने पर लगी कई बटनों को बारी-बारी से दबाने लगा। सहसा उसके सिर में लगा एक लाल बल्व जल उठा वो एक अजीब सी भाषा में वह कुछ कहने सुनने लगा।
गगन की चाय समाप्त हुई तो रोबोट ने सूचना दी कि निमिण अपने मित्रों के साथ स्कूल की खेल टीचर की गाड़ी में बैठकर सुबह ही हवा में तैरने चला गया है। गगन तैयार होने लगे।
धरती और आकाश के बीच अंतरिक्ष में तैरता हुआ अंतरिक्ष नगर ’’आकाश गंगा’’ के नाम से जाना जाता था।
सन् दो हजार एक सौ दस में भारत के कुछ वैज्ञानिकों ने धरती केक शोरगुल, धुंये और युद्ध से घबरा के आसमान की अनंत ऊँचाईयों में ’’आकाश गंगा’’ बसाई थी। यहाँ पैंतीस साल से मनुष्य निवास कर रहे थे। प्रोफेसर गगन के पिता यहीं रहे और अब गगन तथा उनका परिवार भी यहीं रहता है।
यहाँ सब लोगों को अलग-अलग काम सौंपे गये हैं। निमिण के पापा इस केन्द्र के सबसे बड़े वैज्ञानिक हैं, और उसकी मम्मी शुभा यहाँ की एक छोटी सी फैक्ट्री में इंजीनियर है। माह में पांच दिन सब लोग साथ रहते हैं बांकी दिन निमिण अपने स्कूल के छात्रावास में रहता है और मम्मी पापा अपेन अपने दफ्तरों मेें निवास करते है। इस नगर के अलावा आसपास के कुछ तारों पर भी भारत के वैज्ञानिकों ने अपने मकान बना लिये है। इन मकानों तक जाने-आने के लिये सब लोग उड़नकार का ही इस्तेमाल करते हैं। यहाँ दो जगहों की दूरी ध्वनि किलोमीटर से नापी जाती है, यानि की आवाज को एक जगह से दूसरी जगह जाने में कितना समय लगे, उतनी दूरी होती है।
निमिण का काफिला पन्द्रह शब्द किलोमीटर दूर एक सितारे पर बनाये गये पिकनिक स्थान पर पहुँचा और सब बच्चे अपने घरेलू कपड़ों के ऊपर तैरने की पोशाक पहनने लगे। एकाएक उन सबको लगा कि आसमान से सफेद-सफेद आटे जैसा चूर्ण गिर रहा है। इस चूर्ण के कारण वे लोग एक-एक करके बेहोश होने लगे। कुछ ही देर में वहाँ टीचर और दसों छात्र जमीन पर लेट गये थे।
दूर अंतरिक्ष नगर में अपनी प्रयोगशाला में बैठे प्रोफेसर धीरज अपने टेलीविजन पर यहाँ का सारा दृश्य देख रहे थे। बच्चों को बेहोश होते देख उन्होंने अपने टेलीविजन के कुछ बटन दबाये और अब वे सारा दृश्य देख पा रहे थे। बच्चों के ठीक ऊपर एक पूंछ वाला तारा आसमान में तैर रहा था और उसमें से एक सफेद चूर्ण झर रहा था। धीरज ने तुरन्त प्रोफेसर गगन से सम्पर्क किया और उन्हें बोले ‘‘ गगन, तुम्हारा बच्चा और उसके सारे साथी पिकनिक सितारे पर गये थे और वे वहां किसी अज्ञात संकट में हैं। वे सबके सब बेहोश हो चुके हैं तुरंत ही उनकी मदद का इंतजाम करों। ’’
गगन ने तुरन्त ही नगर के प्रसारण केन्द्र में यह संदेश दे दिया और नगर भर में यह संदेश एक ही क्षण में फैल गया । फिर क्या था हडकंप मच गया जो जहाँ था वहीं से पिकनिक सितारे की ओर भाग निकला।
उड़नकार, हैलीकॉप्टर और उड़न बसों की भीड़ अब पिकनिक सितारे की ओर चली जा रही थी। उधर रक्षा विभाग के वैज्ञानिक जेम्स अपने कमरे में थे और सामने रखे कम्प्युटर पर सारा दृश्य देख रहे थे। वे बार-बार सौर किरणें फेंककर उस पूँछ वाले पुच्छल तारे को नष्ट करनेे की कोशिश कर रहे थे। पर वे अपने उद्देश्य मे सफल नहीं हो रहे थे। जेम्स भी पिकनिक सितारे की ओर चले पड़े।
वहाँ भारी भीड़ थी। लोग उडते समय पहने जाने वाले ’’स्पेश सूट’’ पहने हवा में तैर रहे थे। प्रोफेसर गगन ने अपनी कार में से एक टाइम बम निकाला और तैरते हुए उस पुच्छल तारे के पास पहुँचे कि यदि यह किसी दूसरे ग्रह द्वारा भेजा गया अंतरिक्ष बम है तो इसे नष्ट ही कर दें।
वे जब निकट पहुँचे तो हक्का बक्का रह गये वहाँ कोई मशीन नहीं थी बल्कि खूब सारा धुंआ सा एक जगह इक्ट्ठा था जो दूर से एक पुच्छल तारे या विमान की तरह दिख रहा था। इसी धुयें में से सफेद धूल सी बरस रही थी।
गगन ने एक सैकेण्ड के लिये कुछ सोचा फिर साहस करके वे उस गोल घेरे में घुस गये जहाँ बच्चे बेहोश पड़े थे। एक बच्चे को उठाकर वे घेरे से बाहर ले आये और एक व्यक्ति को सौंप कर दुबारा घेरे के भीतर जा पहुँचे। उन्हें बड़ा विस्मय हुआ कि उन पर बेहोशी का असर नहीं हो रहा था। गगन को बच्चे उठाकर लाते देख कई लोगों ने हिम्मत की और वे भी भीतर जाकर बच्चों को उठाने लगे।
घेरे के बाहर आकर बच्चे स्वस्थ होने लगे तो सब लोग प्रसन्न हो गये। एकाएक वह पुच्छल तारा सितारे की जमीन की ओर झुका और लाल रंग में बदलने लगा, फिर वह जमीन से जाकर मिल गया और उसमें से आग निकलने लगी। एक मिनट बाद तो वहाँ कुछ भी नहीं बचा था। सब कुछ गायब हो गया था।
अब अंतरिक्ष नगर की मशीनें सक्रिय हुई वे उस जगह की जांच करने लगी। उधर बच्चों तथा बांकी भीड़ को अपने अपने घर जाने का इशारा किया जा रहा था।
कुछ देर तब जाँच पड़ताल करने के बाद गगन ने अपने मित्रों को बताया कि चिंता करने की कोई बात नहीं है। अंतरिक्ष में हजारों तरह की गैंसे होती है। एक प्रकार की गैस का भंवर आंधी के बगूले की तरह से घूमता हुआ पिकनिक सितारे पर खिंचा चला आया था। यह गैस सितारे की जमीन में चिपकने ही वाली थी कि बीच में बच्चे आ गये और मनुष्य शरीर की बाधा बीच में आ जाने से वह गैस अपनी जगह रूक गई और उसमें रासायनिक परिवर्तन होने लगे। सफेद चूर्ण इसी का परिणाम था, गैस ठोस होकर नीचे गिर रही थी।
सबने राहत की सांस ली और वे लोग ऐसी खोज करने लगे जिससे भविष्य में ऐसा संकट न आ पाये।
उधर बच्चे अपने स्कूल में पहुंचकर अपने खेलकूद में व्यस्त हो गये।

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परिचय :- राजनारायण बोहरे
निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश
जन्म : २० सितम्बर १९५९ को मध्यप्रदेश के अशोकनगर में हुआ।
शिक्षा : लॉ तथा पत्रकरिता में स्नातक और हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर डिग्री।
पुस्तक : चार कथा सँग्रह इज्जत आबरू, गोस्टा तथा अन्य कहानियां हादसा, मेरी प्रियब कथाएँ।
उपन्यास : मुखबिर
अन्य : कुल ३ बाल उपन्यास एवं शताधिक समीक्षा लेख महत्वपूर्ण पत्रिकाओं में प्रकाशित
पुरस्कार : म.प्र. हिन्दी साहित्य सम्मेलन का वागीश्वरी पुरस्कार साहित्य अकादेमी मप्र का सुभद्रा कुमारी चौहान पुरस्कार एवं कहानी भय पर प्रधानमंत्री महोदय द्वारा १९९७ में पुरस्कृत।
सम्प्रति : जीएसटी में राज्य कर सहायक आयुक्त


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