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माँ

अन्नपूर्णा जवाहर देवांगन
महासमुंद

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किसी शब्द में न बांध
पाऊं तुम्हें क्योंकि
पूर्ण शब्द तुम ही हो माँ
अंधेरे में भटकती
खोजती हूं तुम्हें
मेरे हृदय में करती
उजास हो माँ
धूप में जल जाये
न कहीं मेरे पैर
इसलिए अपना पैर
जला लेती हो माँ
सूखे में मैं सोऊं
रात भर इसलिए खुद
गीले में सोती हो माँ
सुख रहे सदा मेरे साथ
इसलिए जीवनभर दुख
मेरा ले लेती हो माँ
अमृत की चाह नहीं
तुझे, मुझे कभी न
पीना पड़े जहर
इसलिए स्वयं नीलकंठ
बन जाती हो मां
आराम से सो सकूं
मैं इसलिए झूला, गोद
में बना लेती हो माँ
अश्क मेरी आँखों से
न बह पाये कभी
इसलिए खुद
समंदर बन जाती हो माँ
एक रोटी मांगू तो
देती हो चार और
भूखा न रहूं मैं इसलिए
गिनती ही भूला देती हो मां
जीवन गणित के सूत्र में
कहीं फेल न हो जाऊं मैं
इसलिए इस शून्य की
दहाई बन जाती हो माँ
नजर न लगे दुनियां
की मुझे इसलिए
आँखों से अपनी माथे
पर मेरे, काजल का टीका
लगा देती हो माँ
कभी मेरी दोस्त बन
जाती हो, बड़ी बहन की
तरह प्यार जताती हो माँ
चुभ न जाये काँटे मेरे
पैरों में, पलकों से अपने
उसे चुन लेती हो माँ
वह शब्द मुझे मिलते
नहीं कर पाऊं जिससे
तेरी ममता का बखान
बस हाथ जोड़ सिर
झुका, कर लेती हूं
तुझे प्रणाम

परिचय :- अन्नपूर्णाजवाहर देवांगन
जन्मतिथि : १७/८/१९७६ छुरा (गरियाबंद)
पिता : श्री गजानंद प्रसाद देवांगन
माता : श्रीमती सुशीला देवांगन
पति : श्री जवाहर देवांगन
शिक्षा : एम.ए हिंदी, बी.एड., पी.एच.डी
सम्प्रति : शोधछात्रा
निवासी : राजेन्द्र नगर, महासमुंद
प्रकाशन : आंचलिक पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित
सम्मान : श्रेष्ठ सृजक सम्मान, साहित्य साधना सम्मान
अन्य : समाजसेवा, एन. जी. ओ. सदस्य

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