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आज नहीं तो कल संभव

विनोद सिंह गुर्जर
महू (इंदौर)

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थाली, लोटे, शंख बजाये,
और खुशी में नाचे हम।
यज्ञ, हवन भी कर डाले,
देव ऋचायें वांचे हम।।

राम नाम के दीपक भी
घर-घर सभी उजारे थे।
देवों जैसे वो क्षण पाकर,
सारे दुख विसारे थे।।

विनाश काल विपरीते बुद्धि,
मति कैसी बौराई है।
अर्थतंत्र को पटरी लाने,
व्यर्थ की सोच बनाई है।
किसने तुमको रोका-टोका,
वेतन हिस्सा दान किया।
देश समूचा साथ तुम्हारे,
किसने यहाँ अभिमान किया।।

महिलाओं का छिपा हुआ धन,
बच्चों ने गुल्लक फोड़ी है।
आपदा के इस संकट में,
नहीं कसर कोई छोड़ी है।।

गर और जरूरत थी तुमको,
आदेश का ढोल पिटा देते।
खुद को गिरवी रख करके,
ढेरों अर्थ जुटा देते।।

किंतु नहीं ये करना था
मंदिर भूले, मदिरा खोले।
पवित्र घंटियां मूक रहीं,
प्यालों के कातिल स्वर बोले।।

मदिरालय सब खोल दिये।
देवालय सारे बंद पड़े।
कोरोना को आज हराने
बुलंद हुए स्वर मंद पड़े।।

बोतल और प्याले पूजे,
जय- जयकारे बोल रहे।।

आज शराबी चूम-चूम कर,
मद्य के प्याले ढोल रहे।।

बूचड़खाने भी खुलवा दो,
पशुओ की बलि चढ़ने दो।
भैरव का आहवान करो,
मदिरा उन पर अब पड़ने दो।
स्वर्ग स्थापन कैसे संभव,
मंदिर ताले पड़े रहें।
असुर खड़े मदिरा पीवें,
देव बेचारे जड़े रहें।।

नंगे होकर झूम रहे जो
कोरोना की मस्ती में,
महामारी क्या यूं रूकेगी,
यारो अपनी बस्ती में।।

कुछ खुद को कोरोना कहते,
कुछ तो बाप बताते हैं।
कुछ टंकी पर चढ़ शोले का
धरमेंदर जतलाते हैं।।

हाला पीने भीड़ उमड़ती,
क्या सोशल डिस्टेंसिंग है।
लॉकडाऊन में पूज्य-पुजारी,
आज शराबी रॉकिंग है।।

राम राज्य हो ऐसे संभव,
क्या साकार करोगे तुम।
गलियों में मदिरा बंटबाकर,
दुख व्यापार करोगे तुम।।

जीवन अरे बचाने को,
कैसा ये मंथन कर डाला।
अमृत का नाम निशान नहीं,
निकल पड़ी हाय मधुशाला।।

फर्क भला क्या पड़ता है,
पीड़ा सहती अबलाओं की ।
मद्यपान ने कोख उजाड़ी,
कई दुखियारी मांओं की।।

कई सिंदूर उजाड़े हैं,
श्रंगार लुटाया बहनों ने।
मुक्तक माला शेष रही,
मुख मोड़ा सुंदर गहनों ने।।

अनाथ हुए बच्चे लाखों,
भीख मांगते राहों पर।
कई नारियां भेंट चढ़ी,
जिंदा अग्नि की दाहों पर।।

पेट और बच्चों की खातिर,
खुद की अस्मत बेची है।
वहशी और दरिंदो हाथों,
किस्मत हाय बेची है।।

अंतर्मन की आज चेतना,
जोर-जोर चिल्लाती है।
धन्य-धन्य कोरोना तेरा,
शांति घरों में आती है।।

मदिरालय सारे बंद रहें,
भले कोरोना बना रहे।।

यदि खुशहाली है घर में,
तो इसका साया घना रहे।।

देश एक था एक रहेगा,
आफत से टकराने को।
आज नहीं तो कल संभव,
भारत पर स्वर्ग बुलाने को।।

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परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यकारिणी सदस्य हैं एवं पत्र-पत्रिकाओं के अलावा इंदौर आकाशवाणी केन्द्र से कई बार प्रसारण, कवि सम्मेलन में भी सहभागिता रही है।
सम्मान – हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिंदी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान


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