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मकान अब घर लग रहे हैं

कंचन प्रभा
दरभंगा (बिहार)

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धरती की बेजान हुई परतों पर
अब विधाता के आशीर्वाद की नजर दिख रही है

उफनते समुद्र में दशहत की सोनामी हुआ करती थी
वहीं सपनीले रेत पर शांत सी समंदर दिख रही है।

प्रदूषण के जंग की जो नजर लग चुकी थी
प्रकृति में प्रेमसुधा सी असर दिख रही है।

गर्म हवाओं में कभी चिलचिलाहट हुआ करती थी
सुनहली धूप में अब नमी की पहर दिख रही है।

जहाँ सुखी पत्तियों की हरदम चरमराहट हुआ करती थी
उस हरे दरख्त पर चिड़ियों की बसर दिख रही है।

कभी बेजान सी खंडहर चुपचाप रोया करती थी
बदले बदले से अब सब शहर दिख रहें हैं।

जहाँ ईंट पत्थरों के मकान हुआ करते थे
अब उसकी जगह हँसती हुई हर घर दिख रही है।

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परिचय :- कंचन प्रभा
निवासी – लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार
सम्मान – हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित 

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