धैर्यशील येवले
इंदौर (म.प्र.)
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सुना है जब हम किसी की अंत्येष्टि में जाते है, तो कुछ घड़ी के लिए श्मशान वैराग्य हमे गैर लेता है। वैसे ही मुझे इस कोविड काल मे कोविड वैराग्य ने घेर लिया है,और जो ज्ञान मुझे इस कालावधी में प्राप्त हुआ वो इस कविता में रूप में आप को सादर प्रस्तुत है।
बहुत कर लिया
बाहर का प्रवास
भीतर के प्रवास का
समय आ गया है।
दुसरो की त्रुटियां
बहुत गिन ली तूने
स्वयं की गिनने का
समय आ गया है ।
आनंद उठा लिया
दूजो पर हंस कर
खुद पर हँसने का
समय आ गया है।
हर एक को नापा
अपने पैमाने से
दूसरे को नाप देने का
समय आ गया है।
अपना लाभ देखते रहे
उसकी हानि से मुझे क्या
सब लेखाजोखा देने का
समय आ गया है।
ज्ञान बांट दिया
खुद रीते रह गए
खुद सीखने का
समय आ गया है।
बढ़ाते रहे लकीर अपनी
दुसरो की काट कर
खुद लकीर खींचने का
समय आ गया है।
पीर को प्रेम समझ
सभी से करते रहे
पीर को समझने का
समय आ गया है।
बहुत झांक लिए
इसके उसके गरेबां में
अपने मे झांकने का
समय आ गया है।
कहते है जिसके पैर न
फटी बिवाई, वो क्या जाने
पीर पराई, सभी पैरों में बिवाई
होने का समय आ गया है।
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परिचय :-
नाम : धैर्यशील येवले
जन्म : ३१ अगस्त १९६३
शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से
सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ।
सम्मान – हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिंदी रक्षक २०२० सम्मान
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