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प्रीति की रीत

अर्चना अनुपम
जबलपुर मध्यप्रदेश

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प्रीत की पाती
ना ये मद है ना ही मदिरा,
ना बंधन है ना आज़ादी।
प्रीति की रीत ही ऐंसी,
मेरे मन को सदा भाती।।
नहीं क्लोशों के झुरमुट में,
हृदय का द्वार है खुलता।
पतित पावन हो अंतर्मन,
तो निर्मल  भाव ये मिलता।।
समय की चाकरी में तुम,
नहीं ये साधना पीसो।
नयन धर नेह के अश्रु,
पटल नव कल्प के सीचों।।
ना रह जाता जहाँ में कुछ,
हो प्रियतम राग की रसना ।
ऋषि मुनि संत विद्ववों के
 कथानक  सार का कहना।।
नैसर्गिक एक दृष्टि रख
ना देखे वंश जीव जाती।
सदा सुरभित है दुनिया में
ये अनुपम ‘प्रीत की पाती’।।
करे लौकिक जहाँ को हेतु
रक्षित भाव की थाती।
विरह तत् नित्य चिंतन में
अवनि अंबर वरे स्वाति ।।
समर्पित प्रेम से बढ़कर
नहीं कुछ ओर रे मितवा।
जो त्यागे अन्य की ख़ातिर
स्वयं उज्ज्वल हो ज्यों बाती।।

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परिचय :- अर्चना पाण्डेय गौतम
साहित्यिक उपनाम – अर्चना अनुपम
जन्म – २१/१०/१९८७
मूल निवासी – जिला कटनी, मध्य प्रदेश
वर्तमान निवास – जबलपुर मध्यप्रदेश
पद – स.उ.नि.(अ),
पदस्थ – पुलिस महानिरीक्षक कार्यालय जबलपुर जोन जबलपुर, मध्य प्रदेश
शिक्षा – समाजशास्त्र विषय से स्नात्कोत्तर
सम्मान – जे.एम.डी. पब्लिकेशन द्वारा काव्य स्मृति सम्मान, विश्व हिन्दी लेखिका मंच द्वारा नारी चेतना की आवाज, श्रेष्ठ कवियित्री सम्मान, लक्ष्मी बाई मेमोरियल अवार्ड, एक्सीलेंट लेडी अवार्ड, विश्व हिन्दी रचनाकार मंच द्वारा – अटल काव्य स्मृति सम्मान, शहीद रत्न सम्मान, मोमसप्रेस्सो हिन्दी लेखक सम्मान २०१९..
विधा – गद्य पद्य दोनों..
भाषा – संस्कृत, हिन्दी भाषा की बुन्देली, बघेली, बृज, अवधि, भोजपुरी में समस्त रस-छंद अलंकार, नज़्म एवं ग़ज़ल हेतु उर्दू फ़ारसी भाषा के शब्द संयोजन
विशेष – स्वरचित रचना विचारों हेतु विभाग उत्तरदायी नहीँ है.. इनका संबंध स्वउपजित एवं व्यक्तिगत है


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