निर्मल कुमार पीरिया
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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व्योम भी भीगा भीगा था, हिय रोशनी, थी रही थिरक,
कंपकपाते उन पलों में, मन-चंचल बूंदे,थी रही बहक,
रति भी दोहरा रही थी, देव के तंग, वलय बाहुपाश में
शीत-तपती, नील-निशा जब, प्रीत अग्न,थी रही दहक…
अधरों के खिलने से तकती, श्वेत मोती माल चमक,
रक्त कमल पंखुड़ियों के मध्य, मंदहास की महक,
मयकदो की रागिनी सी, मनोवल परिहास की खनक,
अँगप्रत्यंग खिल उठा जब, कांधे बिखरे संदली अलक…
मृगनयनी बाणों ने छुआ, तप्त दहकते नीर मन को,
पाषाण समदृश्य उर था जो, मोम सा पिघलने लगा,
शब्दो का बंधन था पर, वाचाल दो नयन बतिया रहे,
ओष्ठ जब लरजने लगे, ते निश प्रेम गान बहने लगा…
ओस की अनछुई बूंदों को, ले मसि रचु, नव प्रीत गान,
अवनी जो हैं प्रेम पटल सम, अंबर से झरता शब्द गान,
बिन रचे ही काव्य हो तुम, शेष रही ना कोई व्यंजना,
प्रीत ग्रन्थ तुम, बाचु मैं, रचे ना “निर्मल” फिर कोई गान..
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परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया
शिक्षा : बी.एस. एम्.ए
सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि.
निवासी : इंदौर, (म.प्र.)
शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं
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