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हाय! विधाता

विनोद सिंह गुर्जर
महू (इंदौर)

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हाय! विधाता तू,
कहां पर सो रहा।
तेरी रचना का अंत,
अब हो रहा।।….

प्यासे हैँ नैनों के सपने।
दूर हुये हैं हमसे अपने।
किसने ये सब खेल रचा है।
धरती पर श्मशान बसा है।।
आज हवायें जहरीली हैं।
सबकी आंखें नम गीली है।।
किसी ने बेटे को खोया हैं।
पिता भी मृत शैया सोया है।।

हँसती बहारों में कांटे,
कोई बो रहा।
तेरी रचना का अंत,
अब हो रहा।।….

बिलख रही है मां की ममता,
शून्य हो चली मानव क्षमता।।
सूरज पर है तम का साया।
चारों ओर अंधेरा छाया।।
चाँद पूर्णिमा भूल चुका है।
मावस के हाथों में बिका है।।
नागिन रातें डोल रहीं हैं।
घर की कुंडी खोल रहीं हैं।।

हाय! पुजारी धैर्य,
तेरा अब खो रहा।
तेरी रचना का अंत,
अब हो रहा।।….

कैसी अजब ये महामारी है।
दुनिया सारी बेचारी है।।
बीती रातें, दिन ढलता है।
नहीं पता कुछ भी चलता है।।
पिंजरे में खुशियां रोतीं हैँ।
किलकारी चुप हो सोती हैं।।
सहमा है श्रंगार यहाँ पर।
रोता है अब प्यार यहॉ पर।।

आज समय लाशों को,
पीठ पर ढो रहा।
तेरी रचना का अंत,
अब हो रहा।।….

तू ही जब यूं मौन रहेगा।
तेरी पूजा कौन करेगा।।
खंडहर होंगीं सारी बस्ती।
नजरें तेरी रहें तरसती।।
मानव नजर नहीं आयेंगे।
यम ही गीत यहाँ गायेंगे।।
कौन तेरा गुणगान करेगा।
विपदा जब तू नहीं हरेगा।।

सुनलो करूण पुकार,
कवि अब रो रहा। …
तेरी रचना का अंत,
अब हो रहा।।…

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परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यकारिणी सदस्य हैं एवं पत्र-पत्रिकाओं के अलावा इंदौर आकाशवाणी केन्द्र से कई बार प्रसारण, कवि सम्मेलन में भी सहभागिता रही है।
सम्मान – हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिंदी रक्षक २०२० सम्मान


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