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जुआं

डॉ. बी.के. दीक्षित
इंदौर (म.प्र.)

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धर्मराज मत कहो उन्हें, जो हार गए निज पत्नी को।
द्वापर युग बेहतर कब था, याद करो हठ धर्मी को।

दिखे नपुंसक पाँच पांडव, द्रोण गुरू भयभीत दिखे।
अर्जुन जैसे राजकुँवर..क्यों तुमको जगजीत दिखे?

जुआं बुरी है बात पता था, धर्म विरुद्ध आचरण था।
फिर क्यों खेले धर्मराज, पता नहीं क्या कारण था?

सूदपुत्र कहते-कहते अर्जुन नहीं थका करते थे।
जाति सूचक शब्दों को, क्यों हर बार बका करते थे?

पाँच पति के जिंदा होते, चीर हरण क्या सम्भव था?
देव कुंड से जन्मी कन्या, हो लज्जित असम्भव था।

पुत्रमोह के बशीभूत, हर युग में पिता दिखाई देता।
भीष्म प्रतिज्ञा ये कैसी, क्या नहीं सुनाई देता था?

पौरुष भी कायर होता है, धन का लोभ छोड़ नहीं पाये।
द्रोण सरीखे महापुरुष, धर्म नीति को जोड़ न पाये?

रही चीखती भरी सभा में, द्रोपदि की पीड़ा सुन लेते।
भीम सेन की गदा बोलती, दुर्योधन को वो धुन देते।

लात मारकर नहीं भगाया, क्यों शकुनि को घर में रखा?
कर्ण गया क्यों नहीं अंग को, दिखता था हक्का बक्का।

विदुर गये न सभा छोड़कर, दास भावना बुरी दिखी।
कृपाचार्य की क्या मज़बूरी, बड़ी शख़्सियत डरी दिखी?

गान्धारी,धृतराष्ट्र, मोह मेंअंधे होकर अकुलाते हैं।
मालूम था जब भलीभाँति, वे जुआं खेलने क्यों जाते हैं?

अंधे का अंधा सुत है, वो देवी कैसे बोल गई?
मात्र एक गाली के कारण, पूरी पृथ्वी डोल गई।

मदिरा पान, जुआँ हर युग में सर्वनाश ही लाता है।
इनके हैं परिणाम बुरे, क्यों शासन इन्हें बढ़ाता है?

 

परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्षा कानपुर में ग्रहण की व् आप गत ३६ वर्ष से इंदौर में निवास कर रहे हैं आप मंचीय कवि, लेखक, अधिमान्य पत्रकार और संभावना क्लब के अध्यक्ष हैं, महाप्रबंधक मार्केटिंग सोमैया ग्रुप एवं अवध समाज साहित्यक संगठन के उपाध्यक्ष भी हैं।
सम्मान – हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak।com) द्वारा हिंदी रक्षक २०२० सम्मान


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