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आ अब लौट चलें

श्रीमती लिली संजय डावर
इंदौर (म .प्र.)

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आ अब लौट चलें….

संकट के इस समय में
फुरसत के इन पलों में

आओ मिलकर सोचें
और विचार करें कि…

इस जीवन का आदि क्या था?
अंत कहाँ कैसा होगा ?
जिस रस्ते से चलकर आये
क्या वहीं पुनः जाना होगा?

कितने शूल-फूल के पथ से
ये जीवन आया होगा,
अब तक का जो सफर किया
क्या आगे भी वैसा होगा?

क्यों कि..

अब मंज़िल अनजानी है
कठिन हुई जिंदगानी है,
कदम कदम पर खतरा है
ये दुनिया तो फानी है।

जाना कहाँ है…समझ ना आये
लेकिन इतना जान लिया,
कि जीवन तो एक यात्रा है
सच्चाई को मान लिया।

अब तक जो मनमानी की
मर्ज़ी की जिंदगानी जी,
उसमें अब परिवर्तन होगा
चिंतन और मनन होगा।

पाषाण युग से चलते चलते
हम जा पहुंचे अंतरिक्ष तक,
जंगल की गुफाओं में रहते रहते
आशियाना बना लिया मंगल तक।

एक वानर जाति के जीव से
होमोसेपियंस, आधुनिक मानव बनने का सफर
तो तय हो गया,
और अब मानव ….
विकास की सभ्यता का पर्याय हो गया।

फिर आज अचानक क्या हुआ?
विकसित मानव…
आधुनिक मानव..
की विकास की गति का पहिया थम क्यों गया ?

ये कौन सी शक्ति है?

जिसमें इतना साहस है,
जो मनुष्य के निरंतर हो रहे
विकास की गति को रोक दे …

या ….
ये संकेत है,
वापसी का,
लौट जाने का,
हमारे अतीत की ओर।

कहीं अब हमें..
कहना तो नहीं होगा कि….

आ अब लौट चलें…

अपनी प्राचीन सभ्यता की ओर

अपनी मूल प्रकृति की ओर….

.

परिचय : श्रीमती लिली संजय डावर
सम्प्रति : प्राचार्य शा. हाई स्कूल पेडमी तह. जिला इंदौर
उपलब्धियां व लेखन : विभिन्न शैक्षिक एवं साहित्यिक मंचों से विचार अभिव्यक्ति, संचालन, स्वरचित सरस्वती वंदना, देशभक्तिगीत, विभिन्न विषयों पर कविता, कहानी लेखन।
अन्य : विगत १५ वर्षों तक आकाशवाणी के विभिन्न कार्यक्रमों, वार्ता, सामयिक विषयों पर परिचर्चा, शिक्षा में परीक्षा की तैयारी कैसे करें आदि में सहभागिता।


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