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ये पब्लिक हैं, सब जानती है…

विमल राव
भोपाल म.प्र

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विशेष :- पुरानी कहावतों व गीतों का व्यंग में समावेश

एक छोटे बच्चे से हमनें पूछा ?
बेटा कविता आती हैं क्या ?
प्रति उत्तर में इस बच्चे की प्रतिक्रिया देखे –
बच्चा बोला श्रीमान जी –

कविता आती नही,
सविता जाती नही,
सुषमा बुलाती नही।

नीतू आंटी नें पापा कों बुलाया हैं,
बस इतनी सी बात पर
मम्मी नें मुँह फुलाया हैं,

मेरे समझ में नही आता
माँ मान क्यों नही जाती
कुछ दिन शर्मा जी के सांथ क्यों नही बिताती

इस तरहा बार बार रूठने से अच्छा हैं
माँ एक बार रुठे !
साँप भी मर जायें, और लाठी भी ना टूटे…

आज कल में इनकी समस्याओ का
समाधान कर रहा हूँ,
दिन रात इन्हें एक करने की
कोशिश कर रहा हूँ

मेरे लाख समझानें पर भी,
इन्हें कुछ समझ नही आयें,
पिताजी का तों अब भी, यही कहना हैं !
दुल्हन वहीं जो, पिया मन भाए…

इनकी हर रोज़ लड़ने की आदतों से,
मैं पक चुका हूँ !
समझा समझा कर इनको
मैं थक चुका हूँ,
अबतों मुझे भी ऐसा लगता हैं
श्री कृष्ण कन्हैया !
बाप बड़ा ना भईया, सबसे बड़ा रुपैया…

कभी कभी तों झगडा,
इतना बिगड़ जाता हैं
मम्मी कों मारने,
पापा का हाथ बढ़ जाता हैं।

इतने में दादा जी की आवाज़ आती हैं
अरे धीरे लड़ो,
ये कालोनी मुझे पहचानती हैं।
पिताजी झट से कहते हैं ?
ये पब्लिक हैं, सब जानती है…

झगड़े की तेज आवाज़ कों सुनकर
एक पड़ोसी अंदर आया
और पिताजी से फरमाया
अरे भाई ख़ुदा के कहर से डरो
पिताजी झट से बोले
जलों मत, बराबरी करों…

इतना सुनकर तों उस व्यक्ति के होश उड़ गए
मोहल्ले के दो चार लोग और जुड़ गए ।

अब बात हवा की तरह
तेजी से फैलने लगी !
मोहल्ले की हर सड़क
गली और चौराहों पर, टहलने लगी ।

“बच्चा बोला पिताजी”
आपकी ये बात मुझे खलने लगी हैं!
हमारें घर की हर शाम
कहर में ढलने लगी हैं,

माँ ये दुःख मुझसे अब और नही सहा जायेगा
मैं जान गया हूँ
तू बचपन में क्यों कहती थी ?
वॉल्यूम कम कर, पापा जाग… जायेगा…

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परिचय :- विमल राव सामाजिक कार्यकर्ता एवं प्रदेश सचिव अ.भा.वंशावली संरक्षण एवं संवर्द्धन संस्थान म.प्र.
निवासी : भोपाल म.प्र


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