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उनको जगाइये

विवेक रंजन ‘विवेक’
रीवा (म.प्र.)

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जन्नत का तसव्वुर ना अभी दिल में लाइये,
दोज़ख में ही बस प्यार की शम्मा जलाइये।

दिल में उमड़ते ज्वार कब रफ्तार पकड़ लें,
तूफाँ मचल ना जाये सनम मान जाइये।

वक़्त की गिरफ़्त में कैदी हों कब तलक,
दिल को तो महका हुआ गुलशन बनाइये।

रंजोगम के फैसले किस्मत पे छोड़िये,
बस ज़िन्दगी है प्यार, यही प्यार पाइये।

क़ाफ़िर तो है हर शख्स जो इंसान बना है,
तनहा सी राहों में नये दीपक जलाइये।

खोये हुए हैं लोग क्यों गुमनाम से ‘विवेक,
ज़रा प्यार से पुकार कर उनको जगाइये।

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परिचय : विवेक रंजन “विवेक”
जन्म –१६ मई १९६३ जबलपुर
शिक्षा- एम.एस-सी.रसायन शास्त्र
लेखन – १९७९ से अनवरत…. दैनिक समय तथा दैनिक जागरण में रचनायें प्रकाशित होती रही हैं। अभी हाल ही में इनका पहला उपन्यास “गुलमोहर की छाँव” प्रकाशित हुआ है।
सम्प्रति – सीमेंट क्वालिटी कंट्रोल कनसलटेंट के रूप में विभिन्न सीमेंट संस्थानों से समबद्ध हैं।


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