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प्रकृति प्रकोप

नरपत परिहार ‘विद्रोही’
उसरवास (राजस्थान)

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सृष्टि निर्मात्री,
प्रलयंकारी प्रकृति।
इसमें ही बननी-बिगड़ती
हमारी आकृति।
फिर भी प्रकृति दोहन करती
हमारी मनोवृत्ति।
विनाशकाले होती
हमारी प्रज्ञा विकृति।।
भूल गये हम प्रकृति पूजा।
कर्मकृत्य, पाखण्डवृत्ति
का ढो़ंग दूजा।
मौत खडी़ द्वार पर,
ये कोरोना अजूबा।
ताली-थाली बजाने का क्या है?
तुम्हारा मंसूबा।
सम्भल जा मेरे यार,
घर में जा, सो जा।।
प्रकृति प्रकोप कोरोना कहर में,
मंदिर, मस्जिद, गिरजाघरों की
सूनी पडी़ दहलीजे सारी।
गीता, कुरान, बाईबिल जाली।
जैविक जंग लड़ रही दुनिया सारी।
प्रकृति तेरी माया निराली।
जग-जनता को कर दी न्यारी न्यारी।।
पशु-परिन्दों को आजाद कर
कैद कर दी जग-जनता सारी।।

परिचय :- नरपत परिहार ‘विद्रोही’
निवासी : उसरवास, तहसील खमनौर, राजसमन्द, राजस्थान


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