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वर्तमान को जी ले

वीणा वैष्णव
कांकरोली

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जिंदगी हर पल, बड़े आनंद से बिताया।
न ही बिगड़ा वर्तमान, भविष्य सजाया।

कहाँ क्या बोलना, ये बहुत ध्यान रखा।
चुप वहाँ न रही, गुनहगार मुझे बताया।

सब वर्तमान हकीकत, लेखनी बताया।
स्वार्थी मानव, कुछ भी समझ न पाया।

ऊंची दुकान, फीके पकवान सजाया।
तभी कुछ दिनों में, ताला खुद लगाया।

हार मान लू मैं, पर यह मेरे बस में नहीं।
प्रभु श्रेष्ठ रचना को, मैंने ना बिसराया।

करती अच्छा, बड़ों का आशीष पाया।
तभी भरी महफिल, सुनने जहां आया।

कहती वीणा, छोड जाना सब यहाँ।
फिर फालतू बातों, क्यूं समय गवाँया।

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परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि है।


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