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लेखनी हाथों में लेकर

विनोद सिंह गुर्जर
महू (इंदौर)

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लेखनी हाथों में लेकर,
यूँ डगर में मत रुको।
वरदान कवि का है मिला
मत डरो मत तुम झुको।।

भावनाओँ के भंवर में
डूब शब्दों को चुनो।
कवि हो तो कुछ शर्म से,
कुछ धर्म से कुछ तो लिखो।।

गद्य में या पद्य में,
गीत में संगीत में
तुम अंधेरे में रहो,
और उजालों से कहो।।

तम हटा ..प्रकाश भर,
रवि जरा आकाश पर।।

रश्मियाँ फिर झूमकर।
लेखनी को चूमकर।
स्वागत करें।
तुझसे कहें।
कवि मत दिखो।
पर कुछ लिखो।।

मावस गहन कालिख रहे,
निशा कराहे और सहे।
कवि उठाना कलम अपनी,
चीरना अंधकार को,
विभा पारावार को।।

चांदनी बिखेर देना,
लाना चंद्रक हार को।
पूर्णिमा खिल उठे,
नीर सागर हिल उठे।।

पुरबा बहे।
हंसकर कहे।
कवि मत दिखो।
पर कुछ लिखो।।

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परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यकारिणी सदस्य हैं एवं पत्र-पत्रिकाओं के अलावा इंदौर आकाशवाणी केन्द्र से कई बार प्रसारण, कवि सम्मेलन में भी सहभागिता रही है।
सम्मान – हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिंदी रक्षक २०२० सम्मान


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