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तुम्हे गर भूलना चाहूं

दामोदर विरमाल
महू – इंदौर (मध्यप्रदेश)

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तुम्हे गर भूलना चाहे तो अक्सर याद आते हो।
हमे गर चोट लगती है तो क्यों आंसू बहाते हो।

तुम्ही ने की है गर ये हंसी ज़िन्दगी मेरी बर्बाद,
फिर क्यों मुझपे ये बदनुमा इल्ज़ाम लगाते हो।

हम तो किया करते थे कोशिशें तुम्हे हंसाने की,
तुम हो ज़ालिम जो मुझे हर एक पल रुलाते हो।

तुमसे बिछड़े हुए कितने बरस बीत गए देखो,
फिर क्यों तुम मुझे अपने ही पास… बुलाते हो।

जब बचा ही नही कुछ तेरे और मेरे दरमियान,
तो क्यों गैरो से अक्सर मेरी खैरियत मंगाते हो।

बहुत देर की अपने आपको साबित करने की,
अब फ़िज़ूल में क्यों इतना झूठा प्यार जताते हो।

बुरे तुम नही थे बुरा तो दिल है तुम्हारा शायद,
क्यों अपने अंदर तुम ये सब देख नही पाते हो।

हम अंजान नही है तुम्हारी ज़िंदगी से समझे,
पता है तुम अब भी औरों से दिल लगाते हो।

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परिचय :- ३१ वर्षीय दामोदर विरमाल पचोर जिला राजगढ़ के निवासी होकर इंदौर में निवास करते है। मध्यप्रदेश में ख्याति प्राप्त हिंदी साहित्य के कवि स्वर्गीय डॉ. श्री बद्रीप्रसाद जी विरमाल इनके नानाजी थे। हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक सम्मान एवं आपके द्वारा अभी तक कई कविताये, मुक्तक, एवं ग़ज़ल व गीत लिखे गए है, जो आये दिन अखबारों में प्रकाशित होते रहते है।  गायन के क्षेत्र कराओके गीत गाने में आप खासी रुचि रखते है।


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