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बेशकीमती मोती

अंजना झा
फरीदाबाद हरियाणा

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नहीं अब तो कदापि भी नहीं
सौपूंगी तुझे उस मैले भावों में
सीप से ढूंढ ढूंढकर निकाले हुए
वो अनमोल बेशकीमती मोती
क्योंकि
नहीं है तेरे लोलुप से नज़रों में
अतुलनीय मोती की पहचान
लगा दोगे इक कीमत बिंदास
और बेच दोगे बाजार भाव में
क्योंकि
जीवन बन चुका भौतिकवादी
हर भाव में ढूँढते हो बस स्वार्थ
अतृप्त रहते हो शायद हर वक्त
मृगतृष्णा में पड़ने की है आदत
क्योंकि
कभी कर्मठ बन नहीं कमा पाते
ना ही इच्छाओं से हो उबर पाते
आइना देखने का वक्त भी नहीं है
पर मोती की है अदम्य सी चाहत
क्योंकि
उंचाई पर पहुँच कर गरज लेते
फिर उन सीढ़ियों को गिरा देते
भूल जाते हो उन सबकी कीमत
जिसने सौंपा आज तुझे वो राह
इसलिए
अब कर दूंगी साफ उस मोती को
अपने इस बेदाग पाक आंचल से
पुनः वापस बंद कर सहेज दूंगी मैं
अनमोल मोती पुनः उस सीप में
पर
न लगने दूंगी तेरे मैले विचारयुक्त
बेशकीमती मोती के बाजार भाव।

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परिचय :-  अंजना झा
माता : श्रीमती फूल झा
पिता : डाक्टर बद्री नारायण झा
जन्म तिथि : ६ अगस्त १९६९
जन्म स्थान : पटना
अंजना झा मूलतः बिहार की निवासी हैं। आपने मनोविज्ञान में एम.ए. किया है। पूर्व में आर्मी पब्लिक स्कूल में शिक्षिका रही हैं। आप कुछ समय आनलाइन पत्रिका साहित्य लाइव में संपादिका पद पर भी रह चुकी हैं। आपकी रुचि लघुकथा और काव्य लेखन में है। आपकी रचनाएँ हिंदी रक्षक मंच
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