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दिखावे की ये दूनियाँ

रागिनी सिंह परिहार
रीवा म.प्र.

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दिखावे की ये दूनियाँ है, यहा शोहरत भी बिकती हैं।
दिलों में दर्द आखो में, सदा खुशियाँ ही दिखती हैं।।
मेरे ईस्वर मेरे मालिक, बता दें तु मुझें इतना।
मोहब्बत की कहानी क्यूँ सदा गुमनाम रहती हैं।।
दिखावे की मोहब्बत हो, तो फिर ज्यादा नहीं टिकती।
किसी अपने मे अपनेपन की कोई बात नहीं दिखती।।
करे कोई लाख कोशिश पर तुम्हे बतलाती हू यारो।
मोहब्बत आज भी बाजार में पैसो से नही बिकती।।
कभी तुलसी कभी मीरा कभी रसखान लिखती हूँ।
मैं राधा कृष्ण के ही प्रेम का गुनगान लिखतीं हूँ।
मेरे मोहन तेरे बंशी के दीवाने तो सभी है।
कलम से प्रेम की पाती का हर पर गान लिखती हूँ।।
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परिचय :- रागिनी सिंह परिहार
जन्मतिथि : १ जुलाई १९९१
पिता : रमाकंत सिंह
माता : ऊषा सिंह
पति : सचिन देव सिंह
शिक्षा : एम.ए हिन्दी साहित्य, डीएड शिक्षाशात्र, पी.जी.डी.सी.ए. कंप्यूटर, एम फील हिन्दी साहित्य, पी.एचडी अध्ययनरत


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