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उजड़ी उजड़ी बस्ती

शाहरुख मोईन
अररिया बिहार

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उजड़ी उजड़ी बस्ती बिखरे पत्थर देख रहा हूं।
मैं भी ज़ालिम का लश्कर देख रहा हूं।

सोच में हूं कब बदलेगा मुकद्दर गरीबों का,
धनवानों के हाथों में जो मैं खंजर देख रहा हूं।

भूख गरीबी में उनको बेघर देख रहा हूं,
हीरे-मोती वाली धरती को मैं बंजर देख रहा हूं।

फटे लिवास बेरोजगारों की कतारें ये कैसा मंज़र,
सियासी चेहरों में मैं अजगर देख रहा हूं।

नकली दुध, ज़हरीला खाना, कसाई डॉक्टर,
बापु मैं भी तेरे तीनों बंदर देख रहा हूं।

महंगाई की मार, भ्रष्टाचार की लाठी,
हाल गरीबों के क्यों इतने बदतर देख रहा हूं।

कांटी जो ज़ुबान उसने तो कलम कहां गूंगी है,
शाहरुख़ तुझमें पौरस भी, तुझमें सिम्न्द्र देख रहा हूं।

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परिचय :- शाहरुख मोईन अररिया बिहार

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