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कविता सुगंध

ओमप्रकाश सिंह
चंपारण (बिहार)

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सुगंध है व्याप्त वायु में
रोम रोम को पुलकित करता
तन मन को बेसुद्ध करता
सरस सांस में है समाहित
यह नव बसंत उत्सव जैसा
खिल चुके हैं पुष्प वृंद सब
आम्रकुंज में आती मंजर
लता कुंज में नव पल्लव
झूम रही गेहूं की बाली
सरसों खिलीं कुम-कुम जैसा
सुगंध है व्याप्त वायु में
रोम-रोम को पुलकित करता
फुदक रही है गौरैया भी
गुटूर गुं की प्रणय गीत भी
गा रही है वय कबूतरी।
फैली धरा पर अनुपम आभा
भंवरे समूह में गुंजन करते
पुष्प सभी है शर्माती
चुम रहे हैं ओष्ठ पुष्प का
हो हो कर सब मतवाले
डोल रहे हैं पुष्प डाल सब
चुबंन से है थर्राते

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परिचय :-  ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा)
ग्राम – गंगापीपर
जिला –पूर्वी चंपारण (बिहार)


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