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अंजुमन छोड दे

प्रमोद त्यागी (शाफिर मुज़फ़्फ़री)
(मुजफ्फरनगर)

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इस नये हिंद की अंजुमन छोड दे
अब तु अपना पुराना चलन छोड दे

सिर्फ मिट्टी नहीं हर गुल है अज़ीज़
ख़ुशबू बन के महक या चमन छोड दे

टुकड़े टुकड़े बिखर जायेंगे जिस्म के
बंद मुठ्ठी के चैनों-अमन छोड दे

नाज़ है जिन परों पे उखड जायेंगे
ख़ैर है अब इसी में गगन छोड दे

दोस्ती में दगा की जो आदत तेरी
तु जो करता रहा आदतन छोड़ दे

इश्क करना तुझे ना हो मुमकिन अगर
फिर ये झूठी मुहब्बत का फन छोड़ दे

सब कुर्बान है इस वतन के लिए
“शाफिर” के लिए बस कफन छोड़ दे

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परिचय :- प्रमोद त्यागी (शाफिर मुज़फ़्फ़री)
ग्राम- सौंहजनी तगान
जिला- मुजफ्फरनगर
प्रदेश- उत्तरप्रदेश


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