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बसंत

ओमप्रकाश सिंह
चंपारण (बिहार)

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बसंत जब आती है।
कोयल गीत गाती है।
इठलाती है डाली पे
आम्र मंजरी में छुप छुप
गुप चुप नहीं, आलाप तीब्र कूक की।
डाली पे छुप गाती है।
बसंत की परिधान में
मुस्कान नव नव आता है।
अतिरंग में वहिरंग हो।
नवरंग जब आता है।
निराशा में आशा पतन में उत्थान
नवताल नव छंद किसलय से
वासंती जब मुस्कुराता है।
बसंत के आगमन से
सृष्टि नव आता है।
मुरझायी हुयी कलियों में कोपल मे
नव गंध नव सुगंध भाता
बसंत जीवन सूचक है।
बसंत अंत मरणासन्न
कुछ काल तक ही आता है।
ब्रह्म बेला में प्राणदायिनी वायु बन।
सुगंध के झरोखों से
प्रिये सी अभिनंदन करती हैं।

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परिचय :-  ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा)
ग्राम – गंगापीपर
जिला –पूर्वी चंपारण (बिहार)


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