Monday, December 23राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

इस संसार में

ओमप्रकाश सिंह
चंपारण (बिहार)

********************

यह सोचा मैंने इस संसार में
अकेला हूं मैं यूं कहने को यहां।
मेरे साथ प्रकृति की सन्नाटा
चिरपरिचित झींगुर की आवाज।
काली स्याह रात
कभी धवल धूसर चांदनी
जिसकी दूधिया प्रकाश।
फिर भी इस सब के बीच अपने आप को
अकेला और तन्हा पाता हूं अपने आप को।
सोचता हूं यहां कोई
अपना होता बोध करा पाता उसे
अपने अंतस की गहराइयों को
सृजनशील मानव अपनी राह खुद बनाते हैं।
उस पथ पर बढते चले जाते हैं।
उद्धत अविराम कर्म पथ पर
सृजनशीलता की परिचय देते हैं।
अपने एहसास के अनगढ पत्थरों को
अपनी कल्पनाओ की पैनी छैनी तथा
कर्मठता की हाथौड़ो से प्रहार कर
नई जीवंत मूर्ति तराश लेते
सृजनशीलता तो प्रकृति की अटूट नियम है।
प्रकृति की शक्ति को नियंत्रित करने की
व्यर्थ कोशिश की गई है।
उनकी भाव भंगिमा ओं के साथ छेड़छाड़.
करके मानव महा विनाश की ओर
निर्बाध अपनी गति को बढ़ाई।

.

परिचय :-  ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा)
ग्राम – गंगापीपर
जिला –पूर्वी चंपारण (बिहार)


आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने चलभाष पर या गूगल पर www.hindirakshak.com खोजें…🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा जरुर कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com हिंदी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु हिंदी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉🏻hindi rakshak manch 👈🏻 हिंदी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें … हिंदी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *