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आपके लबों से

केदार प्रसाद चौहान
गुरान (सांवेर) इंदौर

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देख कर लगता है की।
गुलाब ने भी।
आपके लबों से।।

लाली चुराई होगी।
देख कर आपका सौंदर्य।।

पूर्णिमा की चांदनी भी।
शरमाई होगी।।

बादलों में घूमते हुए।
जैसे यह जल भरे बादल।।

है वैसे ही आपकी आंखों का।
यह सुंदर काजल।।

पेड़ों पर झूमती लताओं का वेश।
ऐसे ही सुंदर लग रहे हैं आपके केस।।

देखकर यह सुंदर परिदृश्य।
बदल गया सारा परिवेश।।

फूलों से सज कर जैसे।
झुक गई हो डाली।।

वैसे ही आपकी।
सुंदरता है निराली।।

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परिचय :-  “आशु कवि” केदार प्रसाद चौहान के.पी. चौहान “समीर सागर” 
निवास – गुरान (सांवेर) इंदौर

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