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खुशखबरी

रेशमा त्रिपाठी 
प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश

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उसका गुनाह इतना सा
जब जुल्म हुआ तब ख़ामोश थी
शायद इसलिए कि
आज्ञापालन की उम्र थी
सोच में उसके भावना कि प्रबलता थी
हम उम्र की संख्या भी शून्य थी
जीवन में सन्नाटा इतना था
कि खुद की सांसों से डर लगता था उसे
धूत्तकार, धिक्कार, बन्दी सा बचपन
मैं एक बोझ हूँ, कोई इंसान नहीं
उसकी कोई चाहत नहीं, कोई सपने नहीं
इस बात से परेशान होकर
हर दिन थोड़ा–थोड़ा सा हृदय आह्लादित करती
एकाकीपन में खुद से बातें करती
किसी ने बताया एक दिन!
मुस्कुराहट हर मर्ज की दवा हैं
उसने मुस्कुराना भी सीख लिया
आदत ऐसी डाली मुस्कुराने कि
हर लब्ज पर अब मुस्कान हैं उसके
उस मुस्कान ने उसे महान बना डाला
लोगों की नजरों में गुनेगार बना डाला
वह ‘वह’ नहीं रही
आदर्श की प्रतिमूर्ति उसे बना डाला
मुस्कान ने उसे हर दिन ऐसा पाला
अब लगता हैं
वह मुस्कान भी बूढ़ी हो गई हैं
मुस्कुराते होंठो से क्रांदन करती हैं अब
आंखों की चमक में उदासी भर देती हैं अब
शब्दों में अनकहा दर्द भर देती हैं अब
तुम दुःखी हो यह कहकर
आँसुओं कि तरफ हर दिन धकेलती हैं अब
खुशखबरी हैं ये उसके लिए भी
मुस्कुराकर रोना उसने सीख लिया अब
जीवन जीना उसने सीख लिया अब
पंख नहीं थे तब भी उसके
पंख नहीं है अब भी उसके
फिर भी उसने उड़ना सीख लिया अब।।

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परिचय :- रेशमा त्रिपाठी 
निवासी :
प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश


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