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सीख

माया मालवेन्द्र बदेका
उज्जैन (म.प्र.)

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हर समय उलाहनों की बारिश करती रहती थी सासू मां।
‘हमारे समय में बहुत सख्ती थी, अब देखो निर्लज्लता से घूमती है बहुएं’!
हर समय अपनी बराबरी बहुओं से करते रहना। रामलाल जी परेशान थे, अपनी पत्नी की आदतों को।
कभी स्वयं ससुराल में नहीं रही वह। रामलाल जी के बचपन में ही उनकी माता का देहांत हो गया था। बड़ी बहन और ननिहाल वालों ने शिक्षा दी, बड़ा किया।
शादी के बाद पिता गांव में ही रहे और अपनी नवोढ़ा को लेकर रामलाल जी दूसरे शहर चले गये।
बच्चों की पढ़ाई नौकरी मे तबादला इसके कारण कभी कभी पिता के पास बच्चों को ले जाते फिर अकेले रह जाते पिता।
गांव में अकेले रहते थे। लोग कहते चले जाओ बहू के पास लेकिन अनुभवी आंख एक बार में ही अपनी बहू को जान गई थी। वह अपने बेटे को दुखी नहीं देख सकते थे।
रामलाल जी की किस्मत अच्छी थी। चार बहूएं गुणी पढ़ी लिखी। सम्मिलित रहती थी। पर पत्नी का व्यवहार उनके साथ बहुत खराब था। चार बेटों का बहुत घमंड था मां को। बेटों से कहा करती अरे मेरे बेटे हीरे है हीरे।
चार घर की आई, पराई सिर फुटाई करती रहो। बहुओं को चौपाये पशु की उपमा भी दे देती। फिर भी बहुएं शांत रहती थी।
अचानक रामलाल जी की मृत्यु हो गई। अथाह सम्पत्ति और घर का बंटवारा।
भाई-भाई दिन रात झगड़ने लगे। सबको हिस्सा चाहिए था धन, मकान, दुकान।
“मां किसी को भी नहीं चाहिए”!
बड़े बेटे के घर इकलौती बेटी थी। इनके आगे पीछे कोई नहीं यह रखेंगे मां को।
बेटा कुछ बोलता तब तक बहू बोल चुकी थी। हम मां के साथ जीवन भर रहेंगे।
इसी बहू को रात दिन ताने मारती थी सासू मां।
बेटे तो बहुत भाग्य से पैदा होते है, बड़ी मुश्किल से बड़े होते हैं और बेटियां तो झाड़ फूस जैसी उग जाती है अमर बेल सी बढ़ जाती है। बेटी की मां जीवन भर रोती है।
चार बेटों के संस्कार आज हंस रहे थे। मां की कोख से आने वाले आज मां को रखने के लिए तैयार नहीं थे।

परिचय :-
नाम – माया मालवेन्द्र बदेका
पिता – डाॅ श्री लक्षमीनारायण जी पान्डेय
माता – श्रीमती चंद्रावली पान्डेय
पति – मालवेन्द्र बदेका
जन्म – ५ सितम्बर १९५८ (जन्माष्टमी) इंदौर मध्यप्रदेश
शिक्षा – एम• ए• अर्थशास्त्र
शौक – संस्कृति, संगीत, लेखन, पठन, लोक संस्कृति
लेखन – चौथी कक्षा मे शुरुवात हिंदी, माळवी,गुजराती लेखन
प्रकाशन – पत्र पत्रिका मे हिन्दी, मालवी में प्रकाशन।
पुस्तक प्रकाशन – १ मौन शबद भी मुखर वे कदी (मालवी) २ – संजा बई का गीत
साझा संकलन – काव्य गंगा, सखी साहित्य, कवितायन, अंतरा शब्द शक्ति, साहित्य अनुसंधान
लघुकथा – लघुत्तम महत्तम, सहोदरी
माळवी – मालवी चौपाल (मालवी)
विधा – हिंदी गीत, भजन, छल्ला, मालवी गीत, लघुकथा हिन्दी, मालवी व्यंग, सजल, नवगीत, चित्र चिंतन, पिरामिड, हायकू, अन्य विधा मे रचना!
सम्मान – झलक निगम संस्कृति सम्मान, श्रीकृष्ण सरल शोध संस्थान गुना द्वारा सम्मान, संस्कृत महाविधालय थाईलैंड द्वारा सम्मान, शब्द प्रवाह सम्मान, हल्ला गुल्ला मंच सम्मान रतलाम, मालवी मिठास मंच द्वारा, नारी शक्ति मंच जावरा, औदिच्य ब्राह्मण समाज,गुरूव ब्राह्मण समाज द्वारा सम्मानित, प्रतिकल्पा सम्मान जमुनाबाई लोकसंस्थान उज्जैन, द्वारा मालवी लेखन के लिए पांडुलिपी पुरस्कार, दैनिक अग्निपथ कवि साहित्यकार सम्मान, शुभसंकल्प संस्था इंदौर, शुजालपुर मालवी न्यास से सम्मानित, संवाद मालवी चौपाल, संजा और मांडना के लिए पुरस्कार
मुख्य ध्येय – हिंदी के साथ आंचलिक भाषा और लोककृति विशेष संजा को जीवंत रखना, बेटी बचाओ मुहिम मे मालवी हिन्दी मे पंक्तिया, संजा, मांडना संरक्षण पच्चीस वर्ष से अधिक भारत से बाहर रहकर हिंदी लेखन का प्रसार, आंचलिक बोली मालवी का प्रसार, मारिशस, थाईलैंड, हिंदी सम्मेलन में उपस्थिति व थाईलैंड में हिंदी गोष्ठी समूह में सहभागिता की।
संरक्षक – झलक निगम संस्कृति, संरक्षक शब्द प्रवाह
संस्थापक – यो माया को मालवो, या मालवा की माया।
अध्यक्ष – संस्कृति सरंक्षण
पुरस्कार प्रदत – “मालवा के गांधी” डॉ लक्ष्मीनारायण पांडेय “मालवा रत्न” स्मृति पुरस्कार!
निवासी – उज्जैन (म.प्र.)


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