मंजर आलम
रामपुर डेहरू, मधेपुरा
********************
संचार क्रांति के इस दौर में शायद ही कुछ लोग ऐसे हों जिनके पास सेलफोन न हो। निश्चय ही मोबाइल बहुत उपयोगी है और हर किसी की जरूरत भी। कहाँ गए वह दिन जब परदेश गए किसी अपनों की खबर पाने को डाकिए का इंतज़ार करना पड़ता था ताकि वह आए तो उनका पत्र साथ लाए। उस पत्र में लिखे संदेश की इतनी महत्ता होती कि एक ही खत को बार बार पढ़ा जाता मानो वह अब भी नया ही हो। अब तो पल पल की खबरें घर बैठे बिठाए मिल रही हैं। “कर लो दुनिया मुट्ठी में” अब स्लोगन नहीं, हकीकत है।
एनड्रॉयड मोबाइल ने तो लोगों के जीवन में इतना बदलाव ला दिया है कि समय बिताने के लिए अब किसी की कमी नहीं खलती। टेलीविजन, अखबार सब कुछ एक ही क्लिक पर मिल जाता है मानो दुनिया अंगुलियों के ईशारे पर हों। अब तो घर परिवार के लोगों के बीच मिल बैठकर बातचीत करने के लिए भी समय कम ही निकलता है। सहपाठियों के साथ गप्पें मारने हों तो व्हाट्सएप, मैसेंजर पर ही चैटिंग हो जाती है । सफर में हों, घर दफ्तर या स्कूल कालेज में। दोस्तों के संग टूर पर हों, विवाह, जन्मदिन, विदाई समारोह, सभा, रैलियों, पर्व त्योहार में हों या किसी धार्मिक आयोजनों में एक सेल्फी तो बनती ही है। हद तो तब हो जाती है जब कोई दुर्घटनाग्रस्त हो और उसे बचाने और अस्पताल पहूँचाने के बजाय उसका विडियो बनाने लगते हैंं। निःसंदेह मोबाइल हमारे लिए महत्वपूर्ण है परंतु यह हम पर निर्भर करता है कि हम इसका कैसा इस्तेमाल करते हैं।
कहीं ऐसा तो नहीं है कि हमने मोबाइल को कुछ ज्यादा ही आवश्यक बना लिया है। हमें गौर करना होगा कि कहीं इससे सामाजिक और पारिवारिक रिश्ते की डोर कमजोर तो नहीं हो रही है! हमारे बच्चे पढ़ाई की जगह ज्यादा समय मोबाइल पर बिता रहे हैं। पालकगण भी अक्सर मोबाइल में व्यस्त रहते हैं। घर ही नहीं कार्यालय में भी लोग बिना झिझक मोबाइल का इस्तेमाल करते हैं भले ही इससे उनके कार्य प्रभावित होते हों। मोबाइल पर बातें करते हुए वाहन चलाना और पैदल चलते हुए भी कान में ईयर फोन लगाए रखना फैशन बन गया है। कितना बेहतर होता कि मोबाइल के सदुपयोग पर चर्चा आयोजित कर लोगों में जागरूकता लाने का प्रयास किया जाता और इसकी शुरूआत घर परिवार से ही होती। विद्यालय जहाँ से दुनिया को ज्ञान का रौशनी मिलती है, जहाँ हमारे बच्चों के जिंदगी गुजारने के गुर सिखाए जाते हैं, जहाँ के अध्यापकों को राष्ट्र निर्माता कहा जाता है। निःसंदेह वहाँ संचार के इस महत्वपूर्ण साधन के बेहतर इस्तेमाल के बारे में बताया जाना चाहिए, ताकि बचपन से ही उनमें सजगता का भाव परवान चढ़े।
विडंबना है कि आजकल स्कूलों में अधिकांश शिक्षक शिक्षिकाएँ अध्ययन-अध्यापन से दूर मोबाईल में डूबे नजर आ जाएँगे। वर्ग कक्ष में बच्चे अपने शिक्षकों का इंतजार करते रहते हैं और शिक्षक मोबाइल में मग्न रहते हैं। मोबाइल की वजह से विद्यालय की गतिविधियों में व्यवधान होता है। दुर्भाग्यपूर्ण है कि शिक्षा विभाग को इस संबंध में पत्र जारी करने पड़ते हैं कि शिक्षक विद्यालय अवधि में अपने मोबाइल से परहेज करें। जिन शिक्षकों पर बच्चों के भविष्य को बनाने की जिम्मेदारी है, उनको तो मोबाइल के सही इस्तेमाल सीखना ही होगा। यदि वे खुद मोबाइल में व्यस्त रहेंगे तो बच्चे की पढ़ाई कैसे संभव हो पाएगी? शिक्षक तो बच्चों के लिए आदर्श होते हैं, फिर वे किस तरह अपना आदर्श स्थापित कर पाएँगे? बेहतर होगा कि शिक्षक खुद ही इस मामले में अनुशासित रहें। हाँ, यदि बच्चों को कुछ आवश्यक ज्ञान देना हो तो इसका इस्तेमाल किया जा सकता है परंतु आपातकालीन स्थिति को छोड़ स्कूलों और कार्यालयों में अनावश्यक रूप से मोबाइल का इस्तेमाल रुकना ही चाहिए।
.
परिचय :- मंजर आलम (स्वतंत्र टिप्पीकार) रामपुर डेहरू, मधेपुरा
आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने चलभाष पर या गूगल पर www.hindirakshak.com खोजें…🙏🏻
आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा जरुर कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com हिंदी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु हिंदी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉🏻hindi rakshak mnch 👈🏻 हिंदी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें … हिंदी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें…