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बिछडे़ यारों का यूँ मिलना

नरपत परिहार ‘विद्रोही’
उसरवास (राजस्थान)

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आज मन बडा़ आनन्दित हुआ।
बिछडे़ यारों का यूँ मिलना हुआ।
हम मिले थे अनजानी दुनिया में।
सहपाठी , संग रहे, संग खेले ।
सुप्त हृदय में प्रेम अंकुरित हुआ।
एक-दुजे के हमदर्दी बने।
न हमें जात-पात का ज्ञान था।
न हमें देश-दुनिया का पता था।
न हमें निज लक्ष्य ज्ञात था।
बस हमें ज्ञात था।
यारों संग वक्त बिताना।
हँसी ठिठोले में मन बहलाना।
मौज-मस्ती भरी दुनिया में जीना।
वक्तांगडा़ई में हम बिछडे़
फिर चले निज लक्ष्य पथ पर
कर क्षण लक्ष्यपूर्ति आ मिले
फिर एक मंच पर ।
पुलकित अतिशय अंतरमन हुआ।
आसमान में उड़ने का मन हुआ।
बिछडे़ यारो का यूँ मिलना हुआ।।

 

परिचय :- नरपत परिहार ‘विद्रोही’
निवासी : उसरवास, तहसील खमनौर, राजसमन्द, राजस्थान


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