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अपना घर

सीमा निगम
रायपुर (छत्तीसगढ़)

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अपने घर का सपना सबका रहता है और आज मेरे घर का सपना पूरा होने जा रहा है तो आप अम्मा-बाबूजी को साथ चलने के लिए मत कहना। “मानसी अपने पति अमित को सख्त लहजे में बोल रही थी।
“ये कैसी बात कर रही हो तुम एक ही शहर में अम्मा बाबूजी को अलग छोड़कर रहेंगे तो लोग क्या कहेंगे”
अमित ने समझाया पर मानसी जिद में अड़ी रही अम्मा-बाबूजी ने दुखी मन से जाने की इजाजत दे दी। पिछले साल ही किश्तो में कर्ज लेकर नई कालोनी में घर लिये थे नये घर मे आकर मानसी उसे सजाने संवारने में लग गयी। गृहप्रवेश भी बहुत धूमधाम से किया। नये घर का आकर्षण अकेले रहने का रोमांच मानसी को लग रहा था कि जिन्दगी में सुख ही सुख है। हर रविवार को अमित अम्मा-बाबूजी से मिलने जाता व उनकी दवाई और जरूरी सामान रख आता।
                   अपने घर में रहते मानसी को छः माह हो गए। धीरे-धीरे आर्थिक समस्या होने लगी क्योंकि अमित के तनख्वाह का एक हिस्सा घर का कर्ज चुकाने में चला जाता था। वहां पिता जी के पेंशन व अमित के तनख्वाह से घर खर्च आसानी से चल जाते। बच्चे भी दादा-दादी के बिना अकेलापन महसूस करते हैं वहॉ उनके साथ कितना खुश रहते थे, मानसी के विचारों का मंथन चल रहा था उसने निश्चय किया कि अम्मा-बाबूजी को किसी तरह साथ रहने के लिए मनाना होगा। बाबू जी ने सुना तो बोले- “साथ रहने को तैयार है पर हम लोग बोझ बनकर नहीं रहेंगे। पुराने घर को बेचकर नये घर का कर्ज चुकाने के बाद। “अम्माजी ने उनकी बातों का समर्थन किया, बच्चे तो खुशी से उछल पड़े अमित की मन चाही मुराद पूरी हो गई मानसी के मन से कर्ज का बोझ उतर गया, अपनों से जो पराए जैसा व्यवहार किया उसके लिए शर्मिंदा है।
“जीवन में रिश्ता होना जरूरी नही है बल्कि रिश्तों में अपनापन होना जरूरी है।”

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परिचय : सीमा निगम  रायपुर (छत्तीसगढ़)


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