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माता-पिता का आशीष

वीणा वैष्णव
कांकरोली

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घने वृक्ष छांव से, घनी मात पिता आशीष छाया।
पड़कर लोभ लालच मनु, सौभाग्य यह गवाया।।

पत्नी प्यार अंधा हो, मात पिता को ठुकराया।
जीवन लगा दिया, तूने उन्हें वृद्धाश्रम पहुंचाया।।

तेरी बारी भी आएगी, क्योंकि तूने भी पुत्र जाया।
जैसा देखा वैसा किया, यही विधाता की माया।।

पुत्र वह तेरा है लेकिन, पत्नी बाहर से वो लाया।
होगा एहसास, जब खेल यही तेरे संग दोहराया।।

सुख दुख दोनों सहता, मात पिता आशीष छाया।
श्रवण जैसा क्यों ना बना, बना विभीषण भाया ।।

मात-पिता वचन पूरा करने, राम ने वन पाया।
सुख दुख सहे बहू, तभी तो जग ना बिसराया।।

इतिहास अमर हो गया, राम संग लक्ष्मण भाया।
कैकयी को कुयश मिला, नाम न कोई दोहराया।।

माता पिता आशीष छाया, जिसने जीवन में पाया।
स्वर्ग सुख धरा पर, उस परिवार ने ही सदा पाया

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परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि है।


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